पेज
मुखपृष्ठ
परिचय
दीर्घा
प्रकाशन
शुक्रवार, 4 जून 2010
आदमी रूप में विषधर ..................
डॉ.लाल रत्नाकर
हज़ार लम्हे,
तुम्हे मुबारक हो,
हमारे साथी .
तुम्हारी यादें ,
हमारे दुःख की है,
आधारशिला .
तुम्हारा छल,
और बल है उस,
हरामी का ही .
जिसको मैंने ,
दूध पिलाया तब,
विष निकला .
आदमी रूप .
में विषधर वह,
विश्वास कहाँ .
तपती हुयी,
गरमी में उसने,
आग लगायी .
नई पोस्ट
पुराने पोस्ट
मुख्यपृष्ठ
सदस्यता लें
संदेश (Atom)