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मंगलवार, 25 नवंबर 2014
दुश्वारियों का आना जाना लगा है
दुश्वारियों का
आना जाना लगा है
करीबियों से !
घरबार या
अपनों पारायों से
किससे कहूँ !
नाराजियों से
बचने में माहिर
हमारे साथी !
कभी भी साथ
निभाते तो भी सही
अपनों से ही !
मखौल नहीं
सच्चाइयाँ ही होंगी
उनकी सही !
@ डा लाल रत्नाकर
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