पेज
(यहां ले जाएं ...)
मुखपृष्ठ
परिचय
दीर्घा
प्रकाशन
▼
बुधवार, 17 फ़रवरी 2010
वे नहीं रहे |
साथी साथ में
है अपनी घात में
दुश्मन जैसा |
पत्थर नहीं
देवता है उनके
पूजते जो है |
जिनके लिए
जीना था एक उम्र
वे नहीं रहे |
जिनका मन
जीवन से उबा है
दानव जैसे |
उनकी शादी
के पचास फागुन
लड़ते बीते |
यौवन तब
सब घेरे रहते
कौन पूछता |
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें
‹
›
मुख्यपृष्ठ
वेब वर्शन देखें
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें