शुक्रवार, 25 दिसंबर 2015

पतनी जैसी : हमारे हाल जानकर करोगे उपहास ही

हमारे हाल 
जानकर करोगे 
उपहास ही 
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चमन कैसा 
जहाँ बियाबान हो 
मरघट सा 
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वतन ऐसा  
जहाँ सम्मान भी हो 
अपमान सा 
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मित्र कैसा हो 
जिसकी पत्नियां हों 
पतनी जैसी 
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घर भी तो हो 
बागबान के समां 
शहर में भी 

डा लाल रत्नाकर



गुरुवार, 3 दिसंबर 2015

फ़ुर्सत

इन्हें फुर्सत
कहाँ रहती होगी
नफासत से।

सिरफिरे वे
तमाम लोग नहीं
लगते होंगे।

जितना हम
उन्हें कसक देते
तने होते हैं ।

नसीहत के
काबिल कहाँ है वे
उदारमना ।

तलब हमें
उनकी लगती तो
कहाँ खोजते ।


@ डॉ.लाल रत्नाकर


बुधवार, 2 दिसंबर 2015

तिकड़म

चलो देखें तो
उसके दफ़्तर में
क्या है वहॉ

तिकड़मों का
इंतज़ाम करके
फँसा रहा हो

कौन है वह
पहचाना उसने
कब तुमको!

तभी तो वहॉ
मुक्कमल तमाशा
ही हो रहा है

फिर भी मानो
ज़हमत ग़ज़ब
की हो गयी है!

@ डॉ लाल रत्नाकर 

@ डा लाल रत्नाकर

काले दिन !

ये काले दिन
भी बितेंगे आख़िर
में कब तक !

जब तक हैं
ये सत्ता के सावन
मेरे मन में !

नहीं चैन है
मन को तब तक
याद करोगे !

भूल गये है
भाव हमारे मन
उपवन में !

धन दौलत
सब यहीं रहेगी
जड़ता मन !

@ डा लाल रत्नाकर