सोमवार, 21 जुलाई 2025

गगन धरा रह गया है यहां सब विनशा।


गगन धरा
रह गया है यहां
सब विनशा।


काल लाल हो
जंग किससे तेरी
तय हो चुका!


अब हमारे
तुम्हारे लिए कुछ
जरूरी नहीं।


यह मुकाम
पा लिया है उसने
मुश्किल तेरा।


-डॉ लाल रत्नाकर

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