पेज
(यहां ले जाएं ...)
मुखपृष्ठ
परिचय
दीर्घा
प्रकाशन
▼
सोमवार, 21 जुलाई 2025
गगन धरा रह गया है यहां सब विनशा।
गगन धरा
रह गया है यहां
सब विनशा।
काल लाल हो
जंग किससे तेरी
तय हो चुका!
अब हमारे
तुम्हारे लिए कुछ
जरूरी नहीं।
यह मुकाम
पा लिया है उसने
मुश्किल तेरा।
-डॉ लाल रत्नाकर
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें
‹
›
मुख्यपृष्ठ
वेब वर्शन देखें
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें