डॉ.लाल रत्नाकर
जब जब मैं
साहस करता हूँ
विरोध करू
तब तब ओ
आकर खड़ा होता
अकड़कर
पर उसने
अपराध कराने
सिखा दी कला
अपराध का
मतलब तो अब
गया बदल
क्योंकि उसने
चुप रहकर जो
करम किया
सुनकर ही
दिल बैठने लगा
मज़ा ले रहा
आखिर कब
आएगी याद मुझे
इंसानियत
डॉ. लाल रत्नाकर
उनकी दशा
देखते ही बनती
छुपाते हुए .
अपने कर्मों
कुकर्मों पर शर्म तो
आती ही नहीं .
जीवन पर
उनका हक होता
तो जीने देते .
कभी नहीं ओ
अपने और गैर
को देखा एक .
नजर से जो
भाषण देते मुल्क
एक है हम .
सर्व समाज
का नारा देकर वो
लूटा किसको .
कहते तो है
विश्वास करो मेरा
पर कितना .
जब उनका
विश्वास किया तब
तो धोखा खाया .
अब कहते
धोखा खाना महज़
ना समझी है .
आज बगल
में जो बैठे हैं छूने
पर धोते थे
नहीं किया था
शोषण हमने वो
हम थोड़े थे .
डॉ.लाल रत्नाकर
डॉ.लाल रत्नाकर
नयी दुनिया
पुरानी दुनिया से
सुरक्षित है
कह सकते
हो तो कह दो पर
इतना सच
कह सकने
का माद्दा है तुममे
तो कह ही दो
जमीन पर
चलना आता होगा
तभी उड़ना
अभी तक तो
हम यही समझे
पर तुम्हारा
क्या कहना है
उनको ज़माने में
तुम्हारी दशा
डॉ.लाल रत्नाकर
सुन्दर घर
मन सुन्दर तो हो
मत चुसो खूं
खाना खाकर
धोखा नहीं करते
नमक खाया
किसका रक्त
चूसा तुमने जब
उन सबका
गरीब होना
उतना बुरा नहीं
जितना चोर
बड़े से बड़े
ईमानदारी कहाँ
करते होंगे
क्योंकि इमान
और बेईमान का
ताल्लुक नहीं
दोनों से मिला
उतना ही भरोसा
पर इमान
ईमानदार
तो ईमानदार ही
होता है भाई
बेईमान की
सूरत देखी आप
दिखता नहीं
डॉ.लाल रत्नाकर
इंजिनियर
जो करता उसमे
कितना मिला
अफसर है
किसके किसके ओ
फिर सेवक
कौन कहता
ख़ुशी में गम नहीं
मिला रहता
जहाँ रुकता
है वह समतल
नहीं होता न
आखिर कहाँ
आया धन इतना
जनता से ही
मूर्तिया गढ़ी
जिसने वह कौन
रचनाकार
पता नहीं क्यों
इस सहन्शाह से
डरते सब
जब की वह
शातिर घोर चोर
लगता ही है
सर्वोच्च सच
से इतना दूर है
लगता उसे
पर चोरों की
जमात जनमत
बटोरती है
कहते वह
अपराधी नहीं है
गुनाहगार