गुरुवार, 5 दिसंबर 2013

साथ दिखना

साथ दिखना 
और बात है पर
साथ होना भी 



आपका होना 

और बात है पर 
न होना साथ 




उनके साथ 

कहाँ थे वे गलत 
अपने साथ 



उन सबने 

सब कुछ जितना 
उतना नहीं 



@ डा लाल रत्नाकर


मंगलवार, 10 अप्रैल 2012

अजीब हाल

(मेरे हाइकू सामाजिक सरोकारों पर आधारित हैं)

अजीब हाल                                                                                  
उनका विभाग में
भागे रहते .

डरते नहीं
ऐसा दिखावा तो है
दिखते नहीं.

'भुइहार' हैं
हमेशा हारते हैं
हर बार ही.

कहते तो है
सुधर गए हैं वे
लगता नहीं .

इन्हें जागीर
मिली है मानते हैं
तिकड़म से .

शनिवार, 25 जून 2011

सब्र इतना

डॉ.लाल रत्नाकर 

न जाने कब 
आएगा वह दिन 
भरेगा पेट .

उद्यमियों का     
कारोबार चलेगा 
तिकड़म से 

यह मत लें 
वह मत लें नहीं 
उत्पाद कैसे  

होगा साथियों 
सब्र फैक्ट्रियां भला 
कैसे करेंगी 

क्योंकि आदमी 
को सब्र नहीं होता 
जो मशीनें हैं 

उन्हें कैसे हो 
भला इस दौर में
सब्र इतना 

शनिवार, 18 जून 2011

प्रसव को ही होने नहीं देते हैं

डॉ.लाल रत्नाकर 

आदमी और 
आदमी की खुशबू 
किसको पता 

स्वार्थ उनका 
और अपनों का भी 
मूल्य कितना 

मूल्य उनका 
लगाओ और और 
पुत्र हुआ है 

बेटी का जन्म 
शोक क्यों न हो जाये 
दहेज़ लोभी 

जन्म बेटे का 
बरदान जैसा  है 
इस देश में 

लड़की न हो 
कभी नहीं चाहता 
दहेज़ बंदी 

आंकड़े कहाँ 
एकत्रित करोगे 
सही सही ओ 

हरियाणा में 
कम हैं लड़कियाँ 
हैं गर्भ में ही ..

प्रसव को ही 
होने नहीं देते हैं 
जो चालाक हैं









रविवार, 23 जनवरी 2011

अपराधों की गठरी बांधे !



डॉ.लाल रत्नाकर

आज हमारे
और तुम्हारे पास
कौन कौन हैं !

कल जो थे ओ
कहाँ गए उनका

अता पता है !

पता बताना
मुमकिन था
नहीं बताया  !

मालूम है क्या
क्या क्या उसको
कौन बताये !

वह तो मूक
बना बैठा है पर
कौन जगाये !

अपराधों की
गठरी बांधे बैठा
बैठक बांधे !  

मंगलवार, 16 नवंबर 2010

कौन साहब

डॉ.लाल रत्नाकर


यह आदमी                                                                                        
आदमी जैसा नहीं
साहब होगा.


इसका हाल
बदहाल नहीं तो
बेहूदा जैसा .


नहीं नहीं है
यह बदमाश सा
कोई साहब.


कौन साहब
ऐसा साहब तेरा
नहीं सबका.


कैसे किसका                                                                          
नहीं  भ्रष्टाचारी है
ये अपराधी .


कैसे किसका
साहब है यह बे
बेहूदा साब


प्रिंसिपल सा
प्रिंसिपल साहब
जी यही साब .

  

रविवार, 10 अक्टूबर 2010

उत्साह की उम्मीद

डॉ.लाल रत्नाकर

ये देश मेरा 
उनका या सबका 
मुर्दे का नहीं.          


जरुरत है 
अधिकारों को जानो 
हड़पो मत .


हड़पने की 
आदत ने किया है 
सत्यानाश ही.


पर जाहिल 
को जहालियत से                 
बचाए कौन.


निराशा से न 
बनती  है हमारी
सेहत कभी .


सेहत बनी 
उत्साह की उम्मीद
के ही चलते .
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इस तरह सताया है, परेशान किया है
गोया कि मुहब्बत नहीं एहसान किया है .
- अफजल फिरदौस

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हमको तो गर्दिश-ए-हालात पे रोना आया 
रोने वाले तुझे किस बात पे रोना आया 
- सैफुद्दीन सैफ

  

रविवार, 3 अक्टूबर 2010

कामनवेल्थ .

डॉ.लाल रत्नाकर

सुबह ५ पै
टीवी खोला चैनल 
आस्था लगाया .

बाबा जी बोल 
रहे थे खेलों पर 
कामनवेल्थ .

गुलाम देश 
खेलेंगे खेल कैसा 
रानी की लूट.

जिमने और 
जीभर जिमाने की 
७० हज़ार .

कारोनों लूटो 
महारानी के गाओ
गीत खेल में .

गुलाम बनो 
लूटो देश और वो 
दौलत जिसे .

शिक्षा बढ़ाते 
विश्वविद्यालय में 
लगाते पर .


कलमाड़ी के 
कारनामें महान 
देश वासियों .

देश वासियों 
करो गुमान वह
रानी नहीं है .

महारानी की 
तरह देश पर 
वह काबिज .

राष्ट्रभक्तों की 
कहानी समझ से 
बहुत दूर .

ई अनहोनी 
घटना होगी यदि 
खेल खेल में .