मंगलवार, 6 जुलाई 2010
गुरुवार, 1 जुलाई 2010
मुझे लेना है हिसाब तुमसे भी
डॉ.लाल रत्नाकर
गर्मी की आड़
बरसती है आग
पियास नहीं .
लगता हर
रोज रोज बाज़ार
बिकता कौन .
इज्जत तेरी
बाज़ार में उछाला
अखबारों ने .
मुझे लेना है
हिसाब तुमसे भी
मेरे मूल्य का .
दाम तुम्हारा
वह दे दिया होगा
लागत दे दो.
नहीं दोगे यूँ
क्योंकि जिन्हें आदत
है जूतों की ही .
काश जूते से
सबक लिया होता
कितना मारें .
अब लगता
है संसद लायक
ट्रेंड हो गया .
गर्मी की आड़
बरसती है आग
पियास नहीं .
लगता हर
रोज रोज बाज़ार
बिकता कौन .
इज्जत तेरी
बाज़ार में उछाला

मुझे लेना है
हिसाब तुमसे भी
मेरे मूल्य का .
दाम तुम्हारा
वह दे दिया होगा
लागत दे दो.
नहीं दोगे यूँ
क्योंकि जिन्हें आदत
है जूतों की ही .
काश जूते से
सबक लिया होता
कितना मारें .
अब लगता
है संसद लायक
ट्रेंड हो गया .
शुक्रवार, 4 जून 2010
आदमी रूप में विषधर ..................
डॉ.लाल रत्नाकर
हज़ार लम्हे,
तुम्हे मुबारक हो,
हमारे साथी .
तुम्हारी यादें ,
हमारे दुःख की है,
आधारशिला .
तुम्हारा छल,
और बल है उस,
हरामी का ही .
जिसको मैंने ,
दूध पिलाया तब,
विष निकला .
आदमी रूप .
में विषधर वह,
विश्वास कहाँ .
तपती हुयी,
गरमी में उसने,
आग लगायी .
मंगलवार, 18 मई 2010
गुरुवार, 13 मई 2010
आखिर कब आएगी याद .............?
मंगलवार, 11 मई 2010
सोमवार, 10 मई 2010
हाइकू
डॉ. लाल रत्नाकर
उनकी दशा
देखते ही बनती
छुपाते हुए .
अपने कर्मों
कुकर्मों पर शर्म तो
आती ही नहीं .
जीवन पर
उनका हक होता
तो जीने देते .
कभी नहीं ओ
अपने और गैर
को देखा एक .
नजर से जो
भाषण देते मुल्क
एक है हम .
उनकी दशा
देखते ही बनती
छुपाते हुए .
अपने कर्मों
कुकर्मों पर शर्म तो
आती ही नहीं .
जीवन पर
उनका हक होता
तो जीने देते .
कभी नहीं ओ
अपने और गैर
को देखा एक .
नजर से जो
भाषण देते मुल्क
एक है हम .
हाइकू
सर्व समाज
का नारा देकर वो
लूटा किसको .
कहते तो है
विश्वास करो मेरा
पर कितना .
जब उनका
विश्वास किया तब
तो धोखा खाया .
अब कहते
धोखा खाना महज़
ना समझी है .
आज बगल
में जो बैठे हैं छूने
पर धोते थे
नहीं किया था
शोषण हमने वो
हम थोड़े थे .
डॉ.लाल रत्नाकर
का नारा देकर वो
लूटा किसको .
कहते तो है
विश्वास करो मेरा
पर कितना .
जब उनका
विश्वास किया तब
तो धोखा खाया .
अब कहते
धोखा खाना महज़
ना समझी है .
आज बगल
में जो बैठे हैं छूने
पर धोते थे
नहीं किया था
शोषण हमने वो
हम थोड़े थे .
डॉ.लाल रत्नाकर
गुरुवार, 29 अप्रैल 2010
तुम्हारी दशा
डॉ.लाल रत्नाकर
नयी दुनिया
पुरानी दुनिया से
सुरक्षित है
कह सकते
हो तो कह दो पर
इतना सच
कह सकने
का माद्दा है तुममे
तो कह ही दो
जमीन पर
चलना आता होगा
तभी उड़ना
अभी तक तो
हम यही समझे
पर तुम्हारा
क्या कहना है
उनको ज़माने में
तुम्हारी दशा
नयी दुनिया
पुरानी दुनिया से
सुरक्षित है
कह सकते
हो तो कह दो पर
इतना सच
कह सकने
का माद्दा है तुममे
तो कह ही दो
जमीन पर
चलना आता होगा
तभी उड़ना
अभी तक तो
हम यही समझे
पर तुम्हारा
क्या कहना है
उनको ज़माने में
तुम्हारी दशा
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