गर्मी की आड़
बरसती है आग
पियास नहीं .
लगता हर
रोज रोज बाज़ार
बिकता कौन .
इज्जत तेरी
बाज़ार में उछाला

मुझे लेना है
हिसाब तुमसे भी
मेरे मूल्य का .
दाम तुम्हारा
वह दे दिया होगा
लागत दे दो.
नहीं दोगे यूँ
क्योंकि जिन्हें आदत
है जूतों की ही .
काश जूते से
सबक लिया होता
कितना मारें .
अब लगता
है संसद लायक
ट्रेंड हो गया .
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