शुक्रवार, 31 दिसंबर 2010
मंगलवार, 16 नवंबर 2010
कौन साहब
डॉ.लाल रत्नाकर
यह आदमी आदमी जैसा नहीं
साहब होगा.
इसका हाल
बदहाल नहीं तो
बेहूदा जैसा .
नहीं नहीं है
यह बदमाश सा
कोई साहब.
कौन साहब
ऐसा साहब तेरा
नहीं सबका.
कैसे किसका
नहीं भ्रष्टाचारी है
ये अपराधी .
कैसे किसका
साहब है यह बे
बेहूदा साब
प्रिंसिपल सा
प्रिंसिपल साहब
जी यही साब .
रविवार, 10 अक्टूबर 2010
उत्साह की उम्मीद
डॉ.लाल रत्नाकर
ये देश मेरा
उनका या सबका
मुर्दे का नहीं.
जरुरत है
अधिकारों को जानो
हड़पो मत .
हड़पने की
आदत ने किया है
सत्यानाश ही.
पर जाहिल
को जहालियत से
बचाए कौन.
निराशा से न
बनती है हमारी
सेहत कभी .
सेहत बनी
उत्साह की उम्मीद
के ही चलते .
-----------------
इस तरह सताया है, परेशान किया है
गोया कि मुहब्बत नहीं एहसान किया है .
- अफजल फिरदौस
ये देश मेरा
उनका या सबका
मुर्दे का नहीं.
जरुरत है
अधिकारों को जानो
हड़पो मत .
हड़पने की
आदत ने किया है
सत्यानाश ही.
पर जाहिल
को जहालियत से
बचाए कौन.
निराशा से न
बनती है हमारी
सेहत कभी .
सेहत बनी
उत्साह की उम्मीद
के ही चलते .
-----------------
इस तरह सताया है, परेशान किया है
गोया कि मुहब्बत नहीं एहसान किया है .
- अफजल फिरदौस
----------------
हमको तो गर्दिश-ए-हालात पे रोना आया
रोने वाले तुझे किस बात पे रोना आया
- सैफुद्दीन सैफ
रोने वाले तुझे किस बात पे रोना आया
- सैफुद्दीन सैफ
रविवार, 3 अक्टूबर 2010
कामनवेल्थ .
डॉ.लाल रत्नाकर
सुबह ५ पै
टीवी खोला चैनल
आस्था लगाया .
बाबा जी बोल
रहे थे खेलों पर
कामनवेल्थ .
गुलाम देश
खेलेंगे खेल कैसा
रानी की लूट.
जिमने और
जीभर जिमाने की
७० हज़ार .
कारोनों लूटो
महारानी के गाओ
गीत खेल में .
गुलाम बनो
लूटो देश और वो
दौलत जिसे .
शिक्षा बढ़ाते
विश्वविद्यालय में
लगाते पर .
कलमाड़ी के
कलमाड़ी के
कारनामें महान
देश वासियों .
देश वासियों
करो गुमान वह
रानी नहीं है .
महारानी की
तरह देश पर
वह काबिज .
राष्ट्रभक्तों की
कहानी समझ से
बहुत दूर .
ई अनहोनी
घटना होगी यदि
खेल खेल में .
मंगलवार, 14 सितंबर 2010
जब इमान नहीं होता
डॉ.लाल रत्नाकर
जो साथ नहीं
वो घात लगाते है,
इन्सान बनाते.
या बेईमान
बनाते है जो भी हो,
जब इमान
नहीं होता है
इन्सान नहीं होता
बेईमान है .
![]() |
चित्र-डॉ.लाल रत्नाकर ,संग्रह -सी.सी.एम्.बी.हैदराबाद | |
बुधवार, 8 सितंबर 2010
जो हाथ नहीं देते संकट में
डॉ.लाल रत्नाकर
साथी निभाने
तो पड़ते है साथ
बेईमानों के .
साथी दिखाने
तो पड़ते है हाथ
बेईमानों को .
साथी साथ न
हो उनके जो साथ
नहीं देते है .
जो हाथ नहीं
देते संकट में ओ
दुश्मन होंगे.
साथी निभाने
तो पड़ते है साथ
बेईमानों के .
साथी दिखाने
तो पड़ते है हाथ
बेईमानों को .
साथी साथ न
हो उनके जो साथ
नहीं देते है .
जो हाथ नहीं
देते संकट में ओ
दुश्मन होंगे.
शनिवार, 28 अगस्त 2010
पहले वाली
डॉ.लाल रत्नाकर
----------------------------
उखाड़ने की
पूरी कोशिश कर
कुछ तो होगा
नहीं अब मै
इतना आगे बढ़
नहीं लौटूंगा .
लौटने की ही
जरूरत हुई तो
लौटूंगा पर .
गाँव नहीं मै
ससुराल लौटूंगा
पहले वाली .
----------------------------
उखाड़ने की
पूरी कोशिश कर
कुछ तो होगा
नहीं अब मै
इतना आगे बढ़
नहीं लौटूंगा .
लौटने की ही
जरूरत हुई तो
लौटूंगा पर .
गाँव नहीं मै
ससुराल लौटूंगा
पहले वाली .
मंगलवार, 6 जुलाई 2010
गुरुवार, 1 जुलाई 2010
मुझे लेना है हिसाब तुमसे भी
डॉ.लाल रत्नाकर
गर्मी की आड़
बरसती है आग
पियास नहीं .
लगता हर
रोज रोज बाज़ार
बिकता कौन .
इज्जत तेरी
बाज़ार में उछाला
अखबारों ने .
मुझे लेना है
हिसाब तुमसे भी
मेरे मूल्य का .
दाम तुम्हारा
वह दे दिया होगा
लागत दे दो.
नहीं दोगे यूँ
क्योंकि जिन्हें आदत
है जूतों की ही .
काश जूते से
सबक लिया होता
कितना मारें .
अब लगता
है संसद लायक
ट्रेंड हो गया .
गर्मी की आड़
बरसती है आग
पियास नहीं .
लगता हर
रोज रोज बाज़ार
बिकता कौन .
इज्जत तेरी
बाज़ार में उछाला

मुझे लेना है
हिसाब तुमसे भी
मेरे मूल्य का .
दाम तुम्हारा
वह दे दिया होगा
लागत दे दो.
नहीं दोगे यूँ
क्योंकि जिन्हें आदत
है जूतों की ही .
काश जूते से
सबक लिया होता
कितना मारें .
अब लगता
है संसद लायक
ट्रेंड हो गया .
शुक्रवार, 4 जून 2010
आदमी रूप में विषधर ..................
डॉ.लाल रत्नाकर
हज़ार लम्हे,
तुम्हे मुबारक हो,
हमारे साथी .
तुम्हारी यादें ,
हमारे दुःख की है,
आधारशिला .
तुम्हारा छल,
और बल है उस,
हरामी का ही .
जिसको मैंने ,
दूध पिलाया तब,
विष निकला .
आदमी रूप .
में विषधर वह,
विश्वास कहाँ .
तपती हुयी,
गरमी में उसने,
आग लगायी .
मंगलवार, 18 मई 2010
गुरुवार, 13 मई 2010
आखिर कब आएगी याद .............?
मंगलवार, 11 मई 2010
सोमवार, 10 मई 2010
हाइकू
डॉ. लाल रत्नाकर
उनकी दशा
देखते ही बनती
छुपाते हुए .
अपने कर्मों
कुकर्मों पर शर्म तो
आती ही नहीं .
जीवन पर
उनका हक होता
तो जीने देते .
कभी नहीं ओ
अपने और गैर
को देखा एक .
नजर से जो
भाषण देते मुल्क
एक है हम .
उनकी दशा
देखते ही बनती
छुपाते हुए .
अपने कर्मों
कुकर्मों पर शर्म तो
आती ही नहीं .
जीवन पर
उनका हक होता
तो जीने देते .
कभी नहीं ओ
अपने और गैर
को देखा एक .
नजर से जो
भाषण देते मुल्क
एक है हम .
हाइकू
सर्व समाज
का नारा देकर वो
लूटा किसको .
कहते तो है
विश्वास करो मेरा
पर कितना .
जब उनका
विश्वास किया तब
तो धोखा खाया .
अब कहते
धोखा खाना महज़
ना समझी है .
आज बगल
में जो बैठे हैं छूने
पर धोते थे
नहीं किया था
शोषण हमने वो
हम थोड़े थे .
डॉ.लाल रत्नाकर
का नारा देकर वो
लूटा किसको .
कहते तो है
विश्वास करो मेरा
पर कितना .
जब उनका
विश्वास किया तब
तो धोखा खाया .
अब कहते
धोखा खाना महज़
ना समझी है .
आज बगल
में जो बैठे हैं छूने
पर धोते थे
नहीं किया था
शोषण हमने वो
हम थोड़े थे .
डॉ.लाल रत्नाकर
गुरुवार, 29 अप्रैल 2010
तुम्हारी दशा
डॉ.लाल रत्नाकर
नयी दुनिया
पुरानी दुनिया से
सुरक्षित है
कह सकते
हो तो कह दो पर
इतना सच
कह सकने
का माद्दा है तुममे
तो कह ही दो
जमीन पर
चलना आता होगा
तभी उड़ना
अभी तक तो
हम यही समझे
पर तुम्हारा
क्या कहना है
उनको ज़माने में
तुम्हारी दशा
नयी दुनिया
पुरानी दुनिया से
सुरक्षित है
कह सकते
हो तो कह दो पर
इतना सच
कह सकने
का माद्दा है तुममे
तो कह ही दो
जमीन पर
चलना आता होगा
तभी उड़ना
अभी तक तो
हम यही समझे
पर तुम्हारा
क्या कहना है
उनको ज़माने में
तुम्हारी दशा
गुरुवार, 15 अप्रैल 2010
शुक्रवार, 9 अप्रैल 2010
बेईमान की, सूरत देखी आप, दिखता नहीं
डॉ.लाल रत्नाकर
सुन्दर घर
मन सुन्दर तो हो
मत चुसो खूं
खाना खाकर
धोखा नहीं करते
नमक खाया
किसका रक्त
चूसा तुमने जब
उन सबका
गरीब होना
उतना बुरा नहीं
जितना चोर
बड़े से बड़े
ईमानदारी कहाँ
करते होंगे

क्योंकि इमान
और बेईमान का
ताल्लुक नहीं
दोनों से मिला
उतना ही भरोसा
पर इमान
ईमानदार
तो ईमानदार ही
होता है भाई
बेईमान की
सूरत देखी आप
दिखता नहीं
सुन्दर घर
मन सुन्दर तो हो
मत चुसो खूं
खाना खाकर
धोखा नहीं करते
नमक खाया
किसका रक्त
चूसा तुमने जब
उन सबका
गरीब होना
उतना बुरा नहीं
जितना चोर
बड़े से बड़े
ईमानदारी कहाँ
करते होंगे
क्योंकि इमान
और बेईमान का
ताल्लुक नहीं
दोनों से मिला
उतना ही भरोसा
पर इमान
ईमानदार
तो ईमानदार ही
होता है भाई
बेईमान की
सूरत देखी आप
दिखता नहीं
रविवार, 4 अप्रैल 2010
सर्वोच्च सच
डॉ.लाल रत्नाकर
इंजिनियर
जो करता उसमे
कितना मिला
अफसर है
किसके किसके ओ
फिर सेवक
कौन कहता
ख़ुशी में गम नहीं
मिला रहता
जहाँ रुकता
है वह समतल
नहीं होता न
आखिर कहाँ
आया धन इतना
जनता से ही
मूर्तिया गढ़ी
जिसने वह कौन
रचनाकार
पता नहीं क्यों
इस सहन्शाह से
डरते सब
जब की वह
शातिर घोर चोर
लगता ही है
सर्वोच्च सच
से इतना दूर है
लगता उसे
पर चोरों की
जमात जनमत
बटोरती है
कहते वह
अपराधी नहीं है
गुनाहगार
इंजिनियर
जो करता उसमे
कितना मिला
अफसर है
किसके किसके ओ
फिर सेवक
कौन कहता
ख़ुशी में गम नहीं
मिला रहता
जहाँ रुकता
है वह समतल
नहीं होता न
आखिर कहाँ
आया धन इतना
जनता से ही
मूर्तिया गढ़ी
जिसने वह कौन
रचनाकार
पता नहीं क्यों
इस सहन्शाह से
डरते सब
जब की वह
शातिर घोर चोर
लगता ही है
सर्वोच्च सच
से इतना दूर है
लगता उसे
पर चोरों की
जमात जनमत
बटोरती है
कहते वह
अपराधी नहीं है
गुनाहगार
सोमवार, 29 मार्च 2010
कफ़न ओढ़,नफ़रत फैलाता,बनता नेता
डॉ.लाल रत्नाकर
स्वाद ख़राब
तो होना ही था पर
बीमारी नहीं
उसकी आँखें
उतनी कजरारी
तो नहीं होगीं
जितना दम
पहले रहा होगा
अब नहीं है
गुज़ारे दिन
अरमान से पर
खेल नियति
का मेल भला
क्या होगा हाल भला
बदनामी का
जमीर बेचा
इमान खो खो कर
क्या बचा होगा
खुशियाँ भी है
कोई कह रहा था
नीद आती है
बेजान नहीं
मुर्दा भी नहीं पर
जिन्दा भी नहीं
कफ़न ओढ़
नफ़रत फैलाता
बनता नेता
स्वाद ख़राब
तो होना ही था पर
बीमारी नहीं
उसकी आँखें
उतनी कजरारी
तो नहीं होगीं
जितना दम
पहले रहा होगा
अब नहीं है
गुज़ारे दिन
अरमान से पर
खेल नियति
का मेल भला
क्या होगा हाल भला
बदनामी का
जमीर बेचा
इमान खो खो कर
क्या बचा होगा
खुशियाँ भी है
कोई कह रहा था
नीद आती है
बेजान नहीं
मुर्दा भी नहीं पर
जिन्दा भी नहीं
कफ़न ओढ़
नफ़रत फैलाता
बनता नेता
गुरुवार, 25 मार्च 2010
बूढ़े हुए ये,पर स्वाद जवानी,के है इनके |
डॉ.लाल रत्नाकर
अब कहानी
कहने का समय
बीत गया है
समय बचा
तो कहानी गढ़ना
सीख रहा हूँ
जीवन बिता
षडयन्त्रो में ही
उनका नाम
जानकर भी
क्या करोगे भईया
काजल को
चिट्ठियां लिख
पूछ रहा हूँ पर
जवाब नहीं
कहता वह
नहीं दूंगा कर लो
जो करना हो
डंडा कर लो

सब कुछ कर लो
जवाब न दूँ
कहता नहीं
समझते सब है
अपराधी जो
नोट इकठ्ठा
करना मर्म धर्म
ही है उसका
कर लो हल्ला
न्यायालय में और
कहीं कितना
उसके संग
मुखबिर रहता
विविध रंगा
चोर उचक्के
विविध रंग के जो
वह पाला है
लड़ लो कुत्तों
वो जो स्वामिभक्त है
तुम उनसे
वो देख रहे
होने वाला है
चतुर भी है
चुगल खोर भी वो
समझता है
पर इनका
उपयोग यही है
क्या करता मैं
चिल्लाओ खूब

शोर मचा लो पर
ये शातिर है
इनको शर्म
नहीं आती है सर
से ही काले है
करने तो दो
सब करम इन्हें
मनमानी के
बूढ़े हुए ये
पर स्वाद जवानी
के है इनके
मरने दो
घुट घुट इनको
लालच ही में
सोमवार, 15 मार्च 2010
इन्सान वही
डॉ.लाल रत्नाकर
मै तेरे गाल
का काला तिल जैसा
निशान नहीं
तेरी नज़रों
में भला इन्सान हूँ
या नहीं हूँ
ये हरकतें
तुम्हारी हैवान सी
इन्सान नहीं
ज़माने याद
उनको करते है
जो इन्सान है
इन्सान यहाँ
वहाँ भटकते तो
जरूर पर
रुकते वहीं
जहाँ इमान होता
इन्सान वही
बरकत है
नियत है उनकी
ईमानदार
मै तेरे गाल
का काला तिल जैसा
निशान नहीं
तेरी नज़रों
में भला इन्सान हूँ
या नहीं हूँ
ये हरकतें
तुम्हारी हैवान सी
इन्सान नहीं
ज़माने याद
उनको करते है
जो इन्सान है
इन्सान यहाँ
वहाँ भटकते तो
जरूर पर
रुकते वहीं
जहाँ इमान होता
इन्सान वही
बरकत है
नियत है उनकी
ईमानदार
शुक्रवार, 12 मार्च 2010
यूँ ही ठीक हो
उनका नहीं
दोषी वो है जिनकी
मदद की है
सजा देने से
मुजरिम तरपे
सच्चाई नहीं
इन्सान बनो
बेईमान हो तुम
तुम्हारा सच
घबराकर
किसे डराते, खुद
छुप जाते हो
समय कहाँ
सच - सच बोलना
भला होने का
भला बनकर
क्या करोगे तुम तो
यूँ ही ठीक हो
दोषी वो है जिनकी
मदद की है
सजा देने से
मुजरिम तरपे
सच्चाई नहीं
इन्सान बनो
बेईमान हो तुम
तुम्हारा सच
घबराकर
किसे डराते, खुद
छुप जाते हो
समय कहाँ
सच - सच बोलना
भला होने का
भला बनकर
क्या करोगे तुम तो
यूँ ही ठीक हो
बुधवार, 17 फ़रवरी 2010
वे नहीं रहे |
मंगलवार, 26 जनवरी 2010
हाइकु
डॉ.लाल रत्नाकर
ना जो अमर
कभी था, न ही होगा
फिर तड़प ||
यद्यपि सच
वह नहीं होता है
जो दिखाई दे ||
उसको क्या है
जिसकी परछाई
उतनी ही हो ||
मैंने उनसे
इतना ही कहा था
तुम चोर हो ||
पर वह भी
पलट कर कहा
तुम भी वही ||
भरत सुनो
गाली देते शर्माओ
प्राचार्य है ये ||
ना जो अमर
कभी था, न ही होगा
फिर तड़प ||
यद्यपि सच
वह नहीं होता है
जो दिखाई दे ||
उसको क्या है
जिसकी परछाई
उतनी ही हो ||
मैंने उनसे
इतना ही कहा था
तुम चोर हो ||
पर वह भी
पलट कर कहा
तुम भी वही ||
भरत सुनो
गाली देते शर्माओ
प्राचार्य है ये ||
शुक्रवार, 22 जनवरी 2010
हाइकु - डॉ.लाल रत्नाकर
कोहरा छाया
जब शाम हुई थी
मै दिल्ली में था |
सोचा भी नहीं
मुश्किल है चलना
कोहरे में भी |
जब शाम हुई थी
मै दिल्ली में था |
सोचा भी नहीं
मुश्किल है चलना
कोहरे में भी |
गुरुवार, 14 जनवरी 2010
आज हमने तुम्हारे लिए एक सपना बुना |
डॉ.लाल रत्नाकर
आज हमने
तुम्हारे लिए एक
सपना बुना |
सुनोगी रात
सपनों में तुम्हे
जगाता रहा |
उनके घर
जब लूट मची थी
लुटेरे सब |
लुटेरे सब
अपने पहचाने
आते जाते थे |
चोर उचक्के
सब उसके साथ
फिर लुटेरा |
पहचाना था
पर चुप हो गया
शरीक जो था |
अमर गया
बेइज्जत होकर
किसने लुटा |
मुलायम ना
मुलायम नहीं था
कठोर संग |
अब देखना
फिर चमकेगा वो
ओ चला गया |
इनका तो था
इतिहास ही सदा
धोखा ही देना |
कहाँ फंसे थे
जानता है फ़साना
अरे अमर |
तुमको लुटा
उसको भी उसने
तब लूटा था |
चला गया है
क्या कहते वह
नहीं गया है |
दाद हो गया
बरबाद हो गया
आना उसका |
शुक्रवार, 1 जनवरी 2010
नया सवेरा नूतन वर्ष लाया २०१० को .
हाइकु
डॉ.लाल रत्नाकर
नया सवेरा
नूतन वर्ष लाया
२०१० को .
हाल बेहाल
खुशियों से भरा है
नवीन साल .
आप सबको
मुबारक हो नया
ख़ुशी का साल .
डॉ.लाल रत्नाकर
नया सवेरा
नूतन वर्ष लाया
२०१० को .
हाल बेहाल
खुशियों से भरा है
नवीन साल .
आप सबको
मुबारक हो नया
ख़ुशी का साल .
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