गुरुवार, 3 दिसंबर 2015

फ़ुर्सत

इन्हें फुर्सत
कहाँ रहती होगी
नफासत से।

सिरफिरे वे
तमाम लोग नहीं
लगते होंगे।

जितना हम
उन्हें कसक देते
तने होते हैं ।

नसीहत के
काबिल कहाँ है वे
उदारमना ।

तलब हमें
उनकी लगती तो
कहाँ खोजते ।


@ डॉ.लाल रत्नाकर


बुधवार, 2 दिसंबर 2015

तिकड़म

चलो देखें तो
उसके दफ़्तर में
क्या है वहॉ

तिकड़मों का
इंतज़ाम करके
फँसा रहा हो

कौन है वह
पहचाना उसने
कब तुमको!

तभी तो वहॉ
मुक्कमल तमाशा
ही हो रहा है

फिर भी मानो
ज़हमत ग़ज़ब
की हो गयी है!

@ डॉ लाल रत्नाकर 

@ डा लाल रत्नाकर

काले दिन !

ये काले दिन
भी बितेंगे आख़िर
में कब तक !

जब तक हैं
ये सत्ता के सावन
मेरे मन में !

नहीं चैन है
मन को तब तक
याद करोगे !

भूल गये है
भाव हमारे मन
उपवन में !

धन दौलत
सब यहीं रहेगी
जड़ता मन !

@ डा लाल रत्नाकर

मंगलवार, 25 नवंबर 2014

दुश्वारियों का आना जाना लगा है

दुश्वारियों का
आना जाना लगा है
करीबियों से !

घरबार या
अपनों पारायों से
किससे कहूँ !

नाराजियों से
बचने में माहिर
हमारे साथी !

कभी भी साथ
निभाते तो भी सही
अपनों से ही !

मखौल नहीं
सच्चाइयाँ ही होंगी
उनकी सही !

@ डा लाल रत्नाकर


रविवार, 9 नवंबर 2014

उनके लिए


उनका आना

खुशियों से भरना
घर आँगन

श्रृंगार रूपी
लताओं की तरह
फैलते जाना

गुपचुप रहना
अपनापन सहना
हृदयांगी का

समग्रता की
चाहना को रखना
उनका गुण

इसे कहते
अपनापन मेरा
उनके लिए 

@ डा लाल रत्नाकर

गुरुवार, 5 दिसंबर 2013

हमारे हितैषी

डॉ.लाल रत्नाकर

वे हमारे हैं 
हितैषी मैं उनके 
काम आता हूँ 


आपने क्या 

ऐसे हितैषी देखे 
जो चाटते हों 


नहीं उनका 

कोई दोष नहीं है 
होश नहीं है 


अब तक तो 

सब ठीक लेकिन 
आगे क्या है 






साथ दिखना

साथ दिखना 
और बात है पर
साथ होना भी 



आपका होना 

और बात है पर 
न होना साथ 




उनके साथ 

कहाँ थे वे गलत 
अपने साथ 



उन सबने 

सब कुछ जितना 
उतना नहीं 



@ डा लाल रत्नाकर


मंगलवार, 10 अप्रैल 2012

अजीब हाल

(मेरे हाइकू सामाजिक सरोकारों पर आधारित हैं)

अजीब हाल                                                                                  
उनका विभाग में
भागे रहते .

डरते नहीं
ऐसा दिखावा तो है
दिखते नहीं.

'भुइहार' हैं
हमेशा हारते हैं
हर बार ही.

कहते तो है
सुधर गए हैं वे
लगता नहीं .

इन्हें जागीर
मिली है मानते हैं
तिकड़म से .

शनिवार, 25 जून 2011

सब्र इतना

डॉ.लाल रत्नाकर 

न जाने कब 
आएगा वह दिन 
भरेगा पेट .

उद्यमियों का     
कारोबार चलेगा 
तिकड़म से 

यह मत लें 
वह मत लें नहीं 
उत्पाद कैसे  

होगा साथियों 
सब्र फैक्ट्रियां भला 
कैसे करेंगी 

क्योंकि आदमी 
को सब्र नहीं होता 
जो मशीनें हैं 

उन्हें कैसे हो 
भला इस दौर में
सब्र इतना 

शनिवार, 18 जून 2011

प्रसव को ही होने नहीं देते हैं

डॉ.लाल रत्नाकर 

आदमी और 
आदमी की खुशबू 
किसको पता 

स्वार्थ उनका 
और अपनों का भी 
मूल्य कितना 

मूल्य उनका 
लगाओ और और 
पुत्र हुआ है 

बेटी का जन्म 
शोक क्यों न हो जाये 
दहेज़ लोभी 

जन्म बेटे का 
बरदान जैसा  है 
इस देश में 

लड़की न हो 
कभी नहीं चाहता 
दहेज़ बंदी 

आंकड़े कहाँ 
एकत्रित करोगे 
सही सही ओ 

हरियाणा में 
कम हैं लड़कियाँ 
हैं गर्भ में ही ..

प्रसव को ही 
होने नहीं देते हैं 
जो चालाक हैं