शुक्रवार, 21 फ़रवरी 2025

कठमुल्ले हो गेरुआ लिबास में आईना देख।


 
कठमुल्ले हो
गेरुआ लिबास में
आईना देख।

नफरत भी
कठमुल्ला निशानी
पहचान यही।

पोंगा पंडित
घोंघा बसंत संत
अंत कहां है।

कहता धर्म
करता जाता काम
अपराधी है।

डाकू के काम
राम के नाम पर
यशस्वी कैसा।

नंगा हो गया
गंगा में नहा कर
महाकुंभ में।

हजारों लाशें
लापता है जो संख्या
उनकी कहां।

बहा दिया है
गहरी धारा में ही
कुचले हुए।

बरसात में
निकालेगा पानी से
बाढ़ का जल।

लेखा उनका
कितना देगा अब
जो डूब गए।

महाकुंभ में
मरने वाले सब
स्वर्ग गए हैं।

बोल रहा है
खोल रहा है द्वार
मुक्तिधाम के।

बहुजन के
अखंड पाखंड औ
अंधकार के।

डॉ.लाल रत्नाकर

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें