डॉ.लाल रत्नाकर
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उखाड़ने की
पूरी कोशिश कर
कुछ तो होगा
नहीं अब मै
इतना आगे बढ़
नहीं लौटूंगा .
लौटने की ही
जरूरत हुई तो
लौटूंगा पर .
गाँव नहीं मै
ससुराल लौटूंगा
पहले वाली .
शनिवार, 28 अगस्त 2010
मंगलवार, 6 जुलाई 2010
गुरुवार, 1 जुलाई 2010
मुझे लेना है हिसाब तुमसे भी
डॉ.लाल रत्नाकर
गर्मी की आड़
बरसती है आग
पियास नहीं .
लगता हर
रोज रोज बाज़ार
बिकता कौन .
इज्जत तेरी
बाज़ार में उछाला
अखबारों ने .
मुझे लेना है
हिसाब तुमसे भी
मेरे मूल्य का .
दाम तुम्हारा
वह दे दिया होगा
लागत दे दो.
नहीं दोगे यूँ
क्योंकि जिन्हें आदत
है जूतों की ही .
काश जूते से
सबक लिया होता
कितना मारें .
अब लगता
है संसद लायक
ट्रेंड हो गया .
गर्मी की आड़
बरसती है आग
पियास नहीं .
लगता हर
रोज रोज बाज़ार
बिकता कौन .
इज्जत तेरी
बाज़ार में उछाला

मुझे लेना है
हिसाब तुमसे भी
मेरे मूल्य का .
दाम तुम्हारा
वह दे दिया होगा
लागत दे दो.
नहीं दोगे यूँ
क्योंकि जिन्हें आदत
है जूतों की ही .
काश जूते से
सबक लिया होता
कितना मारें .
अब लगता
है संसद लायक
ट्रेंड हो गया .
शुक्रवार, 4 जून 2010
आदमी रूप में विषधर ..................
डॉ.लाल रत्नाकर
हज़ार लम्हे,
तुम्हे मुबारक हो,
हमारे साथी .
तुम्हारी यादें ,
हमारे दुःख की है,
आधारशिला .
तुम्हारा छल,
और बल है उस,
हरामी का ही .
जिसको मैंने ,
दूध पिलाया तब,
विष निकला .
आदमी रूप .
में विषधर वह,
विश्वास कहाँ .
तपती हुयी,
गरमी में उसने,
आग लगायी .
मंगलवार, 18 मई 2010
गुरुवार, 13 मई 2010
आखिर कब आएगी याद .............?
मंगलवार, 11 मई 2010
सोमवार, 10 मई 2010
हाइकू
डॉ. लाल रत्नाकर
उनकी दशा
देखते ही बनती
छुपाते हुए .
अपने कर्मों
कुकर्मों पर शर्म तो
आती ही नहीं .
जीवन पर
उनका हक होता
तो जीने देते .
कभी नहीं ओ
अपने और गैर
को देखा एक .
नजर से जो
भाषण देते मुल्क
एक है हम .
उनकी दशा
देखते ही बनती
छुपाते हुए .
अपने कर्मों
कुकर्मों पर शर्म तो
आती ही नहीं .
जीवन पर
उनका हक होता
तो जीने देते .
कभी नहीं ओ
अपने और गैर
को देखा एक .
नजर से जो
भाषण देते मुल्क
एक है हम .
हाइकू
सर्व समाज
का नारा देकर वो
लूटा किसको .
कहते तो है
विश्वास करो मेरा
पर कितना .
जब उनका
विश्वास किया तब
तो धोखा खाया .
अब कहते
धोखा खाना महज़
ना समझी है .
आज बगल
में जो बैठे हैं छूने
पर धोते थे
नहीं किया था
शोषण हमने वो
हम थोड़े थे .
डॉ.लाल रत्नाकर
का नारा देकर वो
लूटा किसको .
कहते तो है
विश्वास करो मेरा
पर कितना .
जब उनका
विश्वास किया तब
तो धोखा खाया .
अब कहते
धोखा खाना महज़
ना समझी है .
आज बगल
में जो बैठे हैं छूने
पर धोते थे
नहीं किया था
शोषण हमने वो
हम थोड़े थे .
डॉ.लाल रत्नाकर
गुरुवार, 29 अप्रैल 2010
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