बुधवार, 8 सितंबर 2010

जो हाथ नहीं देते संकट में

डॉ.लाल रत्नाकर

साथी निभाने 
तो पड़ते है साथ 
बेईमानों के .


साथी दिखाने
तो पड़ते है हाथ 
बेईमानों को .


साथी साथ  न 
हो उनके जो साथ 
नहीं देते है .


जो हाथ नहीं 
देते संकट में ओ 
दुश्मन होंगे.

शनिवार, 28 अगस्त 2010

पहले वाली

डॉ.लाल रत्नाकर
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उखाड़ने की 
पूरी कोशिश कर 
कुछ तो होगा 


नहीं अब मै 
इतना आगे बढ़ 
नहीं लौटूंगा .


लौटने की ही 
जरूरत हुई तो 
लौटूंगा पर .


गाँव नहीं मै 
ससुराल लौटूंगा
पहले वाली . 

गुरुवार, 1 जुलाई 2010

मुझे लेना है हिसाब तुमसे भी

डॉ.लाल रत्नाकर 

गर्मी की आड़ 
बरसती है आग 
पियास नहीं .


लगता हर 
रोज रोज बाज़ार 
बिकता कौन .


इज्जत तेरी 
बाज़ार में उछाला 
अखबारों ने .


मुझे लेना है 
हिसाब तुमसे भी 
मेरे मूल्य का .


दाम  तुम्हारा 
वह दे दिया होगा 
लागत दे दो. 


नहीं दोगे यूँ 
क्योंकि जिन्हें आदत 
है जूतों की ही .


काश जूते से 
सबक लिया होता 
कितना मारें .


अब लगता 
है संसद लायक 
ट्रेंड हो गया . 

शुक्रवार, 4 जून 2010

आदमी रूप में विषधर ..................

डॉ.लाल रत्नाकर  


हज़ार लम्हे,
तुम्हे मुबारक हो,
हमारे साथी .

तुम्हारी यादें ,
हमारे दुःख की है,
आधारशिला .


तुम्हारा छल,
और बल है उस,
हरामी का ही .


जिसको मैंने ,
दूध पिलाया तब,
विष निकला .


आदमी रूप .
में विषधर वह,
विश्वास कहाँ .


तपती हुयी,
गरमी में उसने,
आग लगायी .




गुरुवार, 13 मई 2010

आखिर कब आएगी याद .............?

डॉ.लाल रत्नाकर


जब जब मैं 
साहस करता हूँ 
विरोध करू 


तब तब ओ 
आकर खड़ा होता 
अकड़कर


पर उसने 
अपराध कराने
सिखा दी कला


अपराध का 
मतलब तो अब 
गया बदल 


क्योंकि उसने 
चुप रहकर जो 
करम किया 


सुनकर ही 
दिल बैठने लगा 
मज़ा ले रहा 


आखिर कब 
आएगी याद मुझे 
इंसानियत  

सोमवार, 10 मई 2010

हाइकू

डॉ. लाल रत्नाकर


उनकी दशा 
देखते ही बनती  
छुपाते हुए .


अपने कर्मों 
कुकर्मों पर शर्म तो 
आती ही नहीं .


जीवन पर 
उनका हक होता 
तो जीने देते .


कभी नहीं ओ 
अपने और गैर 
को देखा एक .


नजर से जो 
भाषण देते मुल्क 
एक है हम .



हाइकू

सर्व समाज 
का नारा देकर वो 
लूटा किसको .


कहते तो है 
विश्वास करो मेरा 
पर कितना .


जब उनका 
विश्वास किया तब 
तो धोखा खाया .


अब कहते 
धोखा खाना महज़ 
ना समझी है .


आज बगल
में जो बैठे हैं छूने 
पर धोते थे 


नहीं किया था 
शोषण हमने वो 
हम थोड़े थे .

डॉ.लाल रत्नाकर