सबका साथ
सत्यानाश जिनका
साथ नहीं है।
बकवास भी
अच्छी लगती जब
मरे जमीर।
आसान नहीं
सिंहासन रहना
छीन कर के।
चले जा रहे
कौन-कौन आज ही
वह क्यों बता।
सुनाओ हाल
उस सौदागर का
जो नकली है।
बात असली
करता तो है पर
असलियत ?
तुम्हारी कहूं
या तो उसकी कहूं
कहूं किसकी।
छोड़ गया है
हरा भरा खेत भी
नवनिहाल।
सब्र हो जाता
यदि वह मरता
जो मार रहा।
-डॉ लाल रत्नाकर
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