देश हमारा
हम सबका देश
तुम्हारा कैसे ?
झूठ बोलना
जुमले ही करना
कैसा पाप है ?
किसका बाप
अपने बेटे का या
अंधभक्तों का ?
राष्ट्रपिता है
कौन बनाया ट्रम्प
तो विदेशी है ।
भक्त बनाया
जुमले सुनाकर
भरमाया है।
डॉ लाल रत्नाकर
कौन है हिंदू
कौन मुसलमान
इंशा कौन है!
भक्त जनों के
सुर तो मधुर है
मन हैं काले!
देश जाति का
अभिमान नहीं है
केवल लूट।
ऐसे कैसे हैं
शासक मेरे तेरे
कौन बनाया।
कैसे बने हो
पता तुम्हें है कैसे
शासक जो हो।
डॉ.लाल रत्नाकर
चलो माना कि
तुम्हें हमने चुना
किसके लिए।
तुमने हद
पार कर दी क्यों
उसके लिए।
सही चुनाव
अगर हुआ होता
तो कैसे आते।
गलत हुआ
यह कौन जानता
तेरी योजना।
उपाय तेरा
होगा ही हटाने का
तुम्हारे पास।
डॉ.लाल रत्नाकर
जानकर करोगे
उपहास ही
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चमन कैसा
जहाँ बियाबान हो
मरघट सा
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वतन ऐसा
जहाँ सम्मान भी हो
अपमान सा
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मित्र कैसा हो
जिसकी पत्नियां हों
पतनी जैसी
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घर भी तो हो
बागबान के समां
शहर में भी
डा लाल रत्नाकर
इन्हें फुर्सत
कहाँ रहती होगी
नफासत से।
सिरफिरे वे
तमाम लोग नहीं
लगते होंगे।
जितना हम
उन्हें कसक देते
तने होते हैं ।
नसीहत के
काबिल कहाँ है वे
उदारमना ।
तलब हमें
उनकी लगती तो
कहाँ खोजते ।
@ डॉ.लाल रत्नाकर
चलो देखें तो
उसके दफ़्तर में
क्या है वहॉ
तिकड़मों का
इंतज़ाम करके
फँसा रहा हो
कौन है वह
पहचाना उसने
कब तुमको!
तभी तो वहॉ
मुक्कमल तमाशा
ही हो रहा है
फिर भी मानो
ज़हमत ग़ज़ब
की हो गयी है!
@ डॉ लाल रत्नाकर
@ डा लाल रत्नाकर
ये काले दिन
भी बितेंगे आख़िर
में कब तक !
जब तक हैं
ये सत्ता के सावन
मेरे मन में !
नहीं चैन है
मन को तब तक
याद करोगे !
भूल गये है
भाव हमारे मन
उपवन में !
धन दौलत
सब यहीं रहेगी
जड़ता मन !
@ डा लाल रत्नाकर
दुश्वारियों का
करीबियों से !
घरबार या
अपनों पारायों से
किससे कहूँ !
नाराजियों से
बचने में माहिर
हमारे साथी !
कभी भी साथ
निभाते तो भी सही
अपनों से ही !
मखौल नहीं
सच्चाइयाँ ही होंगी
उनकी सही !
@ डा लाल रत्नाकर
उनका आना
खुशियों से भरना
घर आँगन
श्रृंगार रूपी
लताओं की तरह
फैलते जाना
गुपचुप रहना
अपनापन सहना
हृदयांगी का
समग्रता की
चाहना को रखना
उनका गुण
इसे कहते
अपनापन मेरा
उनके लिए
@ डा लाल रत्नाकर