मुझे लगता है कि जिन लोगों ने या जिसने इस विधा का आविष्कार किया होगा वह बहुत ही तार्किक और प्रासंगिक रहा होगा और उसके समय में भी बहुत-बहुत भयावह परिस्थितियां रही होगी कम शब्दों के माध्यम से गंभीर बात कह देना आमतौर पर जो बड़े-बड़े भाषणों से संभव नहीं होता।
वक़्त के संग
रंग बदल रहा
जिन जिन का!
चेतावनी दी
विदक गया वह
नफरती जो।
कौन लाया है
पता चल गया ना
कारण है जो।
आम आदमी
हिम्मत ना करेगा
बगावत का!
खास आदमी
वाहियात तकाजा
झेल रहा हो !
-डॉ लाल रत्नाकर
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें