शनिवार, 2 मार्च 2024

दोस्त दुश्मन फर्क क्या है दोनों में

दोस्त दुश्मन
फर्क क्या है दोनों में
व्यक्तित्व का ही !

दुश्मनी करो 
विचार करके ही 
नहीं तो तेरा ?

भला किसका 
कौन करेगा कहाँ 
पता तो होगा !

तुम्हारी नश 
भरा कैसा ज़हर
सदा रहता !

खतरे सारे 
आते जाते रहते 
बचता रह ! 

किसका खाता 
नजर छुपा कर 
कैसा इंसान !

डॉ. लाल रत्नाकर 


रविवार, 13 जून 2021

मानवता का, दुश्मन बनकर, सिंहासन पे !




यह कैसा है 
भदेश लिबास में 
पहचानो तो !


मौका परस्त 
अवसरवादी है 
बर्बादी कर !


नाश किया है 
मानवीयता और 
जन जन का !


दुर्दांत वक़्त 
दिन रात दिगंत
व्याकुल सब !


आवाज नहीं 
निकली ही ना तब
परिदां कैसा !


मानवता का 
दुश्मन बनकर 
सिंहासन पे !


डा लाल रत्नाकर
  

रविवार, 8 दिसंबर 2019

यह संदेश पहुँचाना उनको जो भी सोये हैं।



यह संदेश
पहुँचाना उनको
जो भी सोये हैं।


जगाना तो है
जो गहरी नींद में
अब तक हैं।


बडी उम्मीद
उनसे लगाये हैं
भरमाये हैं।


नाता तोड़ दो
भरमना छोड दो
अपने लिए।


हमारी बात
मानो अगर तुम
पीना छोड दो।


डॉ.लाल रत्नाकर

देश हमारा हम सबका देश

देश हमारा
हम सबका देश
तुम्हारा कैसे ?

झूठ बोलना
जुमले ही करना
कैसा पाप है ?

किसका बाप
अपने बेटे का या
अंधभक्तों का ?

राष्ट्रपिता है
कौन बनाया ट्रम्प
तो विदेशी है ।

भक्त बनाया
जुमले सुनाकर
भरमाया है।


डॉ लाल रत्नाकर

शुक्रवार, 27 सितंबर 2019

इंशा कौन है!


कौन है हिंदू 
कौन मुसलमान
इंशा कौन है!

भक्त जनों के
सुर तो मधुर है
मन हैं काले!

देश जाति का
अभिमान नहीं है
केवल लूट।

ऐसे कैसे हैं
शासक मेरे तेरे
कौन बनाया।

कैसे बने हो
पता तुम्हें है कैसे
शासक जो हो।


डॉ.लाल रत्नाकर

सही चुनाव अगर हुआ होता




चलो माना कि
तुम्हें  हमने चुना
किसके लिए।

तुमने हद
पार कर दी क्यों
उसके लिए।

सही चुनाव
अगर हुआ होता
तो कैसे आते।

गलत हुआ
यह कौन जानता
तेरी योजना।

उपाय तेरा
होगा ही हटाने का
तुम्हारे पास।

डॉ.लाल रत्नाकर

शुक्रवार, 25 दिसंबर 2015

पतनी जैसी : हमारे हाल जानकर करोगे उपहास ही

हमारे हाल 
जानकर करोगे 
उपहास ही 
**************
चमन कैसा 
जहाँ बियाबान हो 
मरघट सा 
**************
वतन ऐसा  
जहाँ सम्मान भी हो 
अपमान सा 
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मित्र कैसा हो 
जिसकी पत्नियां हों 
पतनी जैसी 
**************
घर भी तो हो 
बागबान के समां 
शहर में भी 

डा लाल रत्नाकर



गुरुवार, 3 दिसंबर 2015

फ़ुर्सत

इन्हें फुर्सत
कहाँ रहती होगी
नफासत से।

सिरफिरे वे
तमाम लोग नहीं
लगते होंगे।

जितना हम
उन्हें कसक देते
तने होते हैं ।

नसीहत के
काबिल कहाँ है वे
उदारमना ।

तलब हमें
उनकी लगती तो
कहाँ खोजते ।


@ डॉ.लाल रत्नाकर


बुधवार, 2 दिसंबर 2015

तिकड़म

चलो देखें तो
उसके दफ़्तर में
क्या है वहॉ

तिकड़मों का
इंतज़ाम करके
फँसा रहा हो

कौन है वह
पहचाना उसने
कब तुमको!

तभी तो वहॉ
मुक्कमल तमाशा
ही हो रहा है

फिर भी मानो
ज़हमत ग़ज़ब
की हो गयी है!

@ डॉ लाल रत्नाकर 

@ डा लाल रत्नाकर