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दीर्घा
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गुरुवार, 8 मई 2025
अब हो गया। आंखें फोड़कर जो समाज अंधा।
अब हो गया
आंखें फोड़कर जो
समाज अंधा।
वो कल तक
निगहबां होता था
हिफाजत का।
क्रूर ठगों ने
घेरकर हौसला
जिसका तोड़ा।
भरोसा किया
जिसका धोखाधड़ी
कर के ठगा।
सच या सत्य
जीत कर ठगी से
कहां जीता है ।
- डॉ लाल रत्नाकर
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