सामंजस्य
कितना कठिन है
आपस में ही !
नाटक और
करना और बात
जीवन तक
राजेश अब
हमारे बीच नहीं
गुजर गया !
कल कब है
आने वाला उसका
अभी तना है !
पल पल है
मुश्किल जिनका भी
जीवन पल !
निर्माण नहीं
तांडव तेरा मेरा
कब तक है !
विचार किया
आचार तुम्हारा है
कैसा अपना !
चल भूलता
प्रतिपल अपना
अवगुण भी !
कब तक है
अभिमान तुम्हारा
कब जागोगे !
सो जा तू अब
बहुत कर लिया
नाच नंग की !
गोबर खाता
जा गाय सूअर का
लड़ता रह !
धर्म तुम्हारा
नहीं सभी के लिए
धर्म हमारा !
-डॉ. लाल रत्नाकर
प्रकृति पर
निर्भरता कितनी
जीवन तक
मृत्यु की उम्र
निश्चित नहीं होती
यह जान लो !
जाना सबको
इस जहाँ से वहां
पास उनके !
निराशा क्यों
किसके लिए अब
जो लूट गया !
सब कुछ तो
हमारे इर्द गिर्द
ठहरा हुआ !
- डॉ लाल रत्नाकर
दोस्त दुश्मन
फर्क क्या है दोनों में
व्यक्तित्व का ही !
दुश्मनी करो
विचार करके ही
नहीं तो तेरा ?
भला किसका
कौन करेगा कहाँ
पता तो होगा !
तुम्हारी नश
भरा कैसा ज़हर
सदा रहता !
खतरे सारे
आते जाते रहते
बचता रह !
किसका खाता
नजर छुपा कर
कैसा इंसान !
भदेश लिबास में
पहचानो तो !
मौका परस्त
अवसरवादी है
बर्बादी कर !
नाश किया है
मानवीयता और
जन जन का !
दुर्दांत वक़्त
दिन रात दिगंत
व्याकुल सब !
आवाज नहीं
निकली ही ना तब
परिदां कैसा !
मानवता का
दुश्मन बनकर
सिंहासन पे !
यह संदेश
पहुँचाना उनको
जो भी सोये हैं।
जगाना तो है
जो गहरी नींद में
अब तक हैं।
बडी उम्मीद
उनसे लगाये हैं
भरमाये हैं।
नाता तोड़ दो
भरमना छोड दो
अपने लिए।
हमारी बात
मानो अगर तुम
पीना छोड दो।
डॉ.लाल रत्नाकर
देश हमारा
हम सबका देश
तुम्हारा कैसे ?
झूठ बोलना
जुमले ही करना
कैसा पाप है ?
किसका बाप
अपने बेटे का या
अंधभक्तों का ?
राष्ट्रपिता है
कौन बनाया ट्रम्प
तो विदेशी है ।
भक्त बनाया
जुमले सुनाकर
भरमाया है।
डॉ लाल रत्नाकर
कौन है हिंदू
कौन मुसलमान
इंशा कौन है!
भक्त जनों के
सुर तो मधुर है
मन हैं काले!
देश जाति का
अभिमान नहीं है
केवल लूट।
ऐसे कैसे हैं
शासक मेरे तेरे
कौन बनाया।
कैसे बने हो
पता तुम्हें है कैसे
शासक जो हो।
डॉ.लाल रत्नाकर
चलो माना कि
तुम्हें हमने चुना
किसके लिए।
तुमने हद
पार कर दी क्यों
उसके लिए।
सही चुनाव
अगर हुआ होता
तो कैसे आते।
गलत हुआ
यह कौन जानता
तेरी योजना।
उपाय तेरा
होगा ही हटाने का
तुम्हारे पास।
डॉ.लाल रत्नाकर
जानकर करोगे
उपहास ही
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चमन कैसा
जहाँ बियाबान हो
मरघट सा
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वतन ऐसा
जहाँ सम्मान भी हो
अपमान सा
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मित्र कैसा हो
जिसकी पत्नियां हों
पतनी जैसी
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घर भी तो हो
बागबान के समां
शहर में भी
डा लाल रत्नाकर