सामंजस्य
कितना कठिन है
आपस में ही !
नाटक और
करना और बात
जीवन तक
राजेश अब
हमारे बीच नहीं
गुजर गया !
कल कब है
आने वाला उसका
अभी तना है !
पल पल है
मुश्किल जिनका भी
जीवन पल !
निर्माण नहीं
तांडव तेरा मेरा
कब तक है !
विचार किया
आचार तुम्हारा है
कैसा अपना !
चल भूलता
प्रतिपल अपना
अवगुण भी !
कब तक है
अभिमान तुम्हारा
कब जागोगे !
सो जा तू अब
बहुत कर लिया
नाच नंग की !
गोबर खाता
जा गाय सूअर का
लड़ता रह !
धर्म तुम्हारा
नहीं सभी के लिए
धर्म हमारा !
-डॉ. लाल रत्नाकर
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