सोमवार, 24 फ़रवरी 2025

दिवानगी है अगर दिल में ही मोहब्बत है।

 



दिवानगी है 
अगर दिल में ही
मोहब्बत है।

चलो निकलो
सितम सहकर
खिलाफत में।

दुश्मन देश 
आ गया भीतर ही 
उनके लिए।

जिसको माना
भगवान लाया है 
तुम्हारे लिए।

निकलो और 
आलस्य त्यागकर 
देश बचाने।

डॉ लाल रत्नाकर

शनिवार, 22 फ़रवरी 2025

नंगापन है गंजापन है बुद्धि कहां तुम्हारी।



 हाइकु एक विधा है अभिव्यक्ति की जो इस विधा को समझते हैं उन्हें बहुत आनंद आता है वह शब्दों की मीनिंग भी समझते हैं और उसकी प्रतीकात्मकता भी। 
समय को चिन्हित करने के लिए कुछ प्रश्न हमेशा खड़े होते हैं, उन्हीं प्रश्नों का जवाब साहित्य कला और संगीत में मुखरित होता है यदि यह सब किसी भी विधा में नहीं है तो ना तो वह साहित्य है ना कला है और ना ही संगीत है।
इसलिए यह भय बना रहता है कि सच कहने में बहुत खतरा है ऐसा क्यों हो रहा है इन सब सवालों का जवाब इन पंक्तियों में है।

यह सवाल 
लाजिम है समझा 
पाओगे तुम।

इसलिए अपनी बात कहते हुए सच से बिचलित मत होइए क्योंकि समय सब का हिसाब लेता है और सच्चाई आपके सामने आती है। इसलिए यह सवाल उठाने में क्या दिक्कत है -

लोकतंत्र के
दुश्मन क्यों हो तुम 
बतलाओगे।

इसलिए आज बहुत जरूरी है उन सवालों को खड़ा करना जो सत्ता में बैठे लोगों से किये जा रहे हों -

सत्ता में बैठे
भक्तों की जो फौज है
विज्ञान कहां।

पाखंड अंध
चमत्कार आधार 
किसका यह।

संस्कृति पर
अंगुलियां उठती
किस पर है।

आग बबूला 
हो जाओगे इतना 
नाकामी पर।

अपनी भाषा 
का मूल्यांकन कर
आरोप लगा।

बुलडोजर 
का लाशों से रिश्ता है
छुपता नहीं।

बात नहीं है 
धर्म-कर्म अधर्म 
सब चंगा है।

कौन कहता 
डबल बोल रोल
दोनों इंजन।

नंगापन है 
गंजापन है बुद्धि 
कहां तुम्हारी।

- डॉ. लाल रत्नाकर

शुक्रवार, 21 फ़रवरी 2025

कठमुल्ले हो गेरुआ लिबास में आईना देख।


 
कठमुल्ले हो
गेरुआ लिबास में
आईना देख।

नफरत भी
कठमुल्ला निशानी
पहचान यही।

पोंगा पंडित
घोंघा बसंत संत
अंत कहां है।

कहता धर्म
करता जाता काम
अपराधी है।

डाकू के काम
राम के नाम पर
यशस्वी कैसा।

नंगा हो गया
गंगा में नहा कर
महाकुंभ में।

हजारों लाशें
लापता है जो संख्या
उनकी कहां।

बहा दिया है
गहरी धारा में ही
कुचले हुए।

बरसात में
निकालेगा पानी से
बाढ़ का जल।

लेखा उनका
कितना देगा अब
जो डूब गए।

महाकुंभ में
मरने वाले सब
स्वर्ग गए हैं।

बोल रहा है
खोल रहा है द्वार
मुक्तिधाम के।

बहुजन के
अखंड पाखंड औ
अंधकार के।

डॉ.लाल रत्नाकर

दौरे जाहिल का यह समय है पद कोई हो।

 










आईए यहां
संसद के बाहर
फुटपाथ पे।

सभ्यता खड़ी
इंतजार करी है
जुमलेबाजी।

करो आप भी
अपने जीवन में
मौका भी तो है।

अवसर की
आपदा में जरूर
लाभ लेना है।

दौरे जाहिल
का यह समय है
पद कोई हो।


डॉ.लाल रत्नाकर

रविवार, 16 फ़रवरी 2025

तमस पर बहस कैसी होगी जुमले बाजी।

 



                                                  तमस पर
                                             बहस कैसी होगी 
                                               जुमले बाजी।

करते जाओ 
कौन रोक रहा है 
विनाश तक।

परोपकार 
शब्द तो अच्छा ही है 
पर किसका। 

वह औरत 
जमीर रखती है 
बताए कौन !

वह चाकर
परास्त करता है
तिकड़म से।

विकल्पहीन
वक्त रौंद रहा है 
प्रतिभाओं को।

वह डरता 
उससे अब क्यों है 
विकल्प तो है!

-डॉ.लाल रत्नाकर

संत वासंती रंग बिरंगा वेश बदरंगा है।

 


संत वासंती 
रंग बिरंगा वेश
बदरंगा है।

नारंगी रोल
मन वचन तोल
सच न बोल।

प्लास्टिक है ये
असली अहसास 
नकली जैसे।

ख़ान पान में
जीवन एहसास 
कैसा विकास।

दिव्य विचार 
उसने समझा तो
समझ आया।

-डॉ.लाल रत्नाकर


खौफजदा है अवाम आपदा में अवसर के !



खौफजदा है 
अवाम आपदा में 
अवसर के !

सत्ता में बैठा 
निरंकुश शासक 
डरता नहीं !

मौत से वह 
भयभीत नहीं है 
कहता ऐसा !

मर रहे हैं 
लोग अकारथ जो 
कहाँ है पता !

जब आयोग 
बना अयोग्य लोगों 
का जमघट !

सत्ता में बना 
रहना है अगर तो 
चुनो अपना !

- डॉ लाल रत्नाकर

शनिवार, 15 फ़रवरी 2025

प्रेम संगत मंगल सुसंगत क्षोभ उनका।


 प्रेम संगत 
मंगल सुसंगत 
क्षोभ उनका।

हृदय तल 
सुकोमल प्रवास 
एहसास हो। 

अन्यथा दोष 
मढ़ना आसान है 
अभिमान है।
 
अज्ञानता से
प्रबल तन मन 
उपवन हो।

चितवन तो 
सौंदर्य से परे है 
मुख उनका।

-डॉ लाल रत्नाक


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गुरुवार, 13 फ़रवरी 2025

क्या वह गया भयभीत होकर डर गया है।



क्या वह गया
भयभीत होकर
डर गया है।

या व्यापार का
व्यभिचार उनका
खींच ले जाना।

मुमकिन है 
मसले और भी हो 
मन उनका।

चंचल तो हैं
अंकुश उनपर
कौन लगाए?

गरिमा वह
जो भी बनी हुई है 
कौन बचाए। 

मन मस्तिष्क 
सब घिरा हुआ है 
भीतर तक। 

खुलकर तो
वह नहीं बोलता
बीच हमारे !

डॉ. लाल रत्नाकर

जीत जाऐगा हारकर वह भी मंसूबे कैसे !



जीत जाऐगा 
हारकर वह भी 
मंसूबे कैसे !

भला उनका 
कौन करेगा अब
भीख देकर 

हल्ला बोलना 
मुनासिब नहीं है 
उसके साथ !

कौन रहेगा 
कब तक रहेगा 
वहां ठहरा !

विनाश होगा 
विकास के बहाने 
कब तक यूँ !

- डॉ लाल रत्नाकर