शनिवार, 22 फ़रवरी 2025

नंगापन है गंजापन है बुद्धि कहां तुम्हारी।



 हाइकु एक विधा है अभिव्यक्ति की जो इस विधा को समझते हैं उन्हें बहुत आनंद आता है वह शब्दों की मीनिंग भी समझते हैं और उसकी प्रतीकात्मकता भी। 
समय को चिन्हित करने के लिए कुछ प्रश्न हमेशा खड़े होते हैं, उन्हीं प्रश्नों का जवाब साहित्य कला और संगीत में मुखरित होता है यदि यह सब किसी भी विधा में नहीं है तो ना तो वह साहित्य है ना कला है और ना ही संगीत है।
इसलिए यह भय बना रहता है कि सच कहने में बहुत खतरा है ऐसा क्यों हो रहा है इन सब सवालों का जवाब इन पंक्तियों में है।

यह सवाल 
लाजिम है समझा 
पाओगे तुम।

इसलिए अपनी बात कहते हुए सच से बिचलित मत होइए क्योंकि समय सब का हिसाब लेता है और सच्चाई आपके सामने आती है। इसलिए यह सवाल उठाने में क्या दिक्कत है -

लोकतंत्र के
दुश्मन क्यों हो तुम 
बतलाओगे।

इसलिए आज बहुत जरूरी है उन सवालों को खड़ा करना जो सत्ता में बैठे लोगों से किये जा रहे हों -

सत्ता में बैठे
भक्तों की जो फौज है
विज्ञान कहां।

पाखंड अंध
चमत्कार आधार 
किसका यह।

संस्कृति पर
अंगुलियां उठती
किस पर है।

आग बबूला 
हो जाओगे इतना 
नाकामी पर।

अपनी भाषा 
का मूल्यांकन कर
आरोप लगा।

बुलडोजर 
का लाशों से रिश्ता है
छुपता नहीं।

बात नहीं है 
धर्म-कर्म अधर्म 
सब चंगा है।

कौन कहता 
डबल बोल रोल
दोनों इंजन।

नंगापन है 
गंजापन है बुद्धि 
कहां तुम्हारी।

- डॉ. लाल रत्नाकर

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें