कलुषित विचार
आया है कैसे।
ट्रंप मोदी का
गांव गांव में छाया
आतंक कैसै।
है निदान जो
उनका कौन करे
उपचार से।
अगुवाई में
जिनके बदलाव
समाजवादी।
कहां मिलेंगे
सुविधाएं ले लेंगे
अपनों तक।
दंगाई देखा
श्वेत वस्त्र में सत्ता
पर काबिज।
फैलाता वह
जन-जन तक जो
नफरत है।
शांति व्यवस्था
का जो जिम्मेदार है
वही करता।
विश्वास नहीं
शपथ लेकर के
संविधान की।
कसम ले ले
या गंगा में खड़ा हो
नंगा होकर।
कैसा इंसान
फिर राक्षस कौन
कौन दंगाई।
-डॉ लाल रत्नाकर
सपना देखा
आज रात में मैंने
नहीं भरोसा
सफ़र में था
कई तरह के साथ
मिला था रात।
वह परायी
बहुत करीब थी
अपनों से भी।
ऐसे लोग हैं
जो सपने में होते
वह कहां है।
यही धरा पे
बेचते सपनों को
राजा बनके।
- डॉ लाल रत्नाकर
समय मिला
साबित किया हमने
प्रतिमान को।
भगवान को
मानो न मानो तुम
अधिकार है।
शिक्षा का हक
सबको करो विचार
यही आधार।
चलो बसाएं
गांव ऐसा सपना
होए साकार।
आग बबूला
होना नहीं दुश्मन
लगाए आग।
-डॉ लाल रत्नाकर
.jpg)
चतरू तेरी
चतुराई का हाल
सुनाऊँ कैसे !
जब जब तू
काम तुम्हारा
चालाकी का सबको
पता चलता !
नहीं भरोसा
कोई करता तेरा
कैसे कर लू!
मनसूबे को
होगा तोड़ना तेरा
हर हालात !
डॉ लाल रत्नाकर
कितनी आजादी है
विचार करो।
लानत जब
तुम पर लगे तो
धार्मिक होना।
अंधी जनता
भक्त तो हो जाएगी
उसकी बेटी?
कहीं नजर
उसकी बेटी आती
समारोह में।
मंगल वन
बना रहे हो तुम
पूंजीपतियों।
उस जनता
मेहनत की थाती
लूटकर ही।
चलता रहे
साम्राज्य तुम्हारा तो
लूटता रहे।
वजह कोई
जरूर है उनमें
रिश्ते नहीं है।
यह भी कोई
तरीका है उनका।
कैसे समझें।
मनमुटाव
होता रहता है सदा
करीबियों में।
पर इतना
खतरनाक रिश्ता
दिखता नहीं।
समय पर
वही करीब तो था
जब उनके।
कितना बौना
तुम्हारी सुरक्षा ने
कर दिया है।
सबका साथ
सत्यानाश जिनका
साथ नहीं है।
बकवास भी
अच्छी लगती जब
मरे जमीर।
आसान नहीं
सिंहासन रहना
छीन कर के।
चले जा रहे
कौन-कौन आज ही
वह क्यों बता।
सुनाओ हाल
उस सौदागर का
जो नकली है।
बात असली
करता तो है पर
असलियत ?
तुम्हारी कहूं
या तो उसकी कहूं
कहूं किसकी।
छोड़ गया है
हरा भरा खेत भी
नवनिहाल।
सब्र हो जाता
यदि वह मरता
जो मार रहा।
-डॉ लाल रत्नाकर
केवल तुम
ऐसा नहीं करते
अपराधी सा।
लोकतांत्रिक
नाटक करता है
राष्ट्रद्रोही है।
समझना है
बहुत कठिन भी
आचरण से।
दिखाई नहीं
देता उसमें दोष
अंधभक्ति में।
-डॉ लाल रत्नाकर
 |
गूगल से साभार |
तिलक छापा अंग प्रत्यंंग धरो
प्रतीक ही है।
ठग ने ठगा
मन ने नहीं माना
मंदिर गए।
ठगे गए हैं
लौट के पता चला
कहां से आए।
उपदेशक !
वह पानी पिए हैं
घाट घाट का ।
मंदिर नहीं
घर चाहिए तुम्हें
अधिकार है।
अन्न दे रहा
उपकार नहीं है
गुलाम बना।
कब जागोगे
आंखों वाले बहरे
सोए गहरे।