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दीर्घा
प्रकाशन
शुक्रवार, 6 जून 2025
इबादत है तमाम संघर्ष के कद्रदानों से।
इबादत है
तमाम संघर्ष के
कद्रदानों से।
नसीहत है
सांप की तरह जो
आस्तीन धरे।
बुद्धिमानों की
मंडली में हाजिरी
जरूरी नहीं।
मजबूरी हो
जरूरी नहीं दोस्ती
दोस्ती के मध्य।
दुश्मनी ना हो
यह अच्छी बात है
कितना बुरा।
-डॉ लाल रत्नाकर
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