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दीर्घा
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बुधवार, 25 जून 2025
कौन कहता इतना खुलकर मुंह पर यूं।
कौन कहता
इतना खुलकर
मुंह पर यूं।
समझने में
देर नहीं की होगी
तो उसने भी।
यही तो फर्क
महसूस होता है
उनमें तभी।
आमतौर पे
आदमी आदमी भी
रह गया क्या।
समझ आता
इतनी रहबरी
तो कैसे होती।
डॉ लाल रत्नाकर
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