रविवार, 16 फ़रवरी 2025

संत वासंती रंग बिरंगा वेश बदरंगा है।

 


संत वासंती 
रंग बिरंगा वेश
बदरंगा है।

नारंगी रोल
मन वचन तोल
सच न बोल।

प्लास्टिक है ये
असली अहसास 
नकली जैसे।

ख़ान पान में
जीवन एहसास 
कैसा विकास।

दिव्य विचार 
उसने समझा तो
समझ आया।

-डॉ.लाल रत्नाकर


खौफजदा है अवाम आपदा में अवसर के !



खौफजदा है 
अवाम आपदा में 
अवसर के !

सत्ता में बैठा 
निरंकुश शासक 
डरता नहीं !

मौत से वह 
भयभीत नहीं है 
कहता ऐसा !

मर रहे हैं 
लोग अकारथ जो 
कहाँ है पता !

जब आयोग 
बना अयोग्य लोगों 
का जमघट !

सत्ता में बना 
रहना है अगर तो 
चुनो अपना !

- डॉ लाल रत्नाकर

शनिवार, 15 फ़रवरी 2025

प्रेम संगत मंगल सुसंगत क्षोभ उनका।


 प्रेम संगत 
मंगल सुसंगत 
क्षोभ उनका।

हृदय तल 
सुकोमल प्रवास 
एहसास हो। 

अन्यथा दोष 
मढ़ना आसान है 
अभिमान है।
 
अज्ञानता से
प्रबल तन मन 
उपवन हो।

चितवन तो 
सौंदर्य से परे है 
मुख उनका।

-डॉ लाल रत्नाक


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गुरुवार, 13 फ़रवरी 2025

क्या वह गया भयभीत होकर डर गया है।



क्या वह गया
भयभीत होकर
डर गया है।

या व्यापार का
व्यभिचार उनका
खींच ले जाना।

मुमकिन है 
मसले और भी हो 
मन उनका।

चंचल तो हैं
अंकुश उनपर
कौन लगाए?

गरिमा वह
जो भी बनी हुई है 
कौन बचाए। 

मन मस्तिष्क 
सब घिरा हुआ है 
भीतर तक। 

खुलकर तो
वह नहीं बोलता
बीच हमारे !

डॉ. लाल रत्नाकर

जीत जाऐगा हारकर वह भी मंसूबे कैसे !



जीत जाऐगा 
हारकर वह भी 
मंसूबे कैसे !

भला उनका 
कौन करेगा अब
भीख देकर 

हल्ला बोलना 
मुनासिब नहीं है 
उसके साथ !

कौन रहेगा 
कब तक रहेगा 
वहां ठहरा !

विनाश होगा 
विकास के बहाने 
कब तक यूँ !

- डॉ लाल रत्नाकर  
 

मंगलवार, 11 फ़रवरी 2025

जनम मृत्यु, हरपल रही है, जीते जीवन।


 
जनम मृत्यु 
हरपल रही है 
जीते जीवन।

यही रहेगा 
धन धरती और 
कर्म तुम्हारा। 

मर्म समझ 
तब तक न आया
जब पाया है। 

जग ऐसे ही 
चलता ही जाएगा 
तुम्हारे बिना। 

जरूरत है
हमारी तुम्हें तब
समझ आया। 

प्रतीकों  तुम्हें 
हमने आजमाया 
कब उसने।

पूरा जीवन 
जीकर चले जाना 
उचित जाना। 

मेरे बस में 
तेरे बस में जो था 
वही तो किया। 

धर्म अधर्म
सब सगे संबंधी 
किसके संग। 

रंग है चोखा 
ढंग अनोखा तेरा 
सच है मेरा।

बोल रहा है 
जो सच-सच मेरा 
ढक अपना।

गहना होता
बचन बोल यदि 
झूठ बोलता।

- डॉ. लाल रत्नाकर 

सोमवार, 10 फ़रवरी 2025

सामंजस्य कितना कठिन है

 


सामंजस्य 
कितना कठिन है 
आपस में ही !

नाटक और 
करना और बात 
जीवन तक 

राजेश अब 
हमारे बीच नहीं 
गुजर गया !

कल कब है 
आने वाला उसका 
अभी तना है !

पल पल है 
मुश्किल जिनका भी 
जीवन पल !

निर्माण नहीं 
तांडव तेरा मेरा 
कब तक है !

विचार किया 
आचार तुम्हारा है 
कैसा अपना !

चल भूलता 
प्रतिपल अपना 
अवगुण भी !

कब तक है 
अभिमान तुम्हारा 
कब जागोगे !

सो जा तू अब 
बहुत कर लिया 
नाच नंग की !

गोबर खाता 
जा गाय सूअर का 
लड़ता रह !

धर्म तुम्हारा 
नहीं सभी के लिए  
धर्म हमारा !

-डॉ. लाल रत्नाकर

रविवार, 9 फ़रवरी 2025

जाना सबको इस जहाँ से वहां पास उनके !




प्रकृति पर 
निर्भरता कितनी 
जीवन तक 

मृत्यु की उम्र 
निश्चित नहीं होती 
यह जान लो !

जाना सबको 
इस जहाँ से वहां 
पास उनके !

निराशा क्यों 
किसके लिए अब 
जो लूट गया !

सब कुछ तो 
हमारे इर्द गिर्द 
ठहरा हुआ !

- डॉ लाल रत्नाकर 

शनिवार, 2 मार्च 2024

दोस्त दुश्मन फर्क क्या है दोनों में

दोस्त दुश्मन
फर्क क्या है दोनों में
व्यक्तित्व का ही !

दुश्मनी करो 
विचार करके ही 
नहीं तो तेरा ?

भला किसका 
कौन करेगा कहाँ 
पता तो होगा !

तुम्हारी नश 
भरा कैसा ज़हर
सदा रहता !

खतरे सारे 
आते जाते रहते 
बचता रह ! 

किसका खाता 
नजर छुपा कर 
कैसा इंसान !

डॉ. लाल रत्नाकर 


रविवार, 13 जून 2021

मानवता का, दुश्मन बनकर, सिंहासन पे !




यह कैसा है 
भदेश लिबास में 
पहचानो तो !


मौका परस्त 
अवसरवादी है 
बर्बादी कर !


नाश किया है 
मानवीयता और 
जन जन का !


दुर्दांत वक़्त 
दिन रात दिगंत
व्याकुल सब !


आवाज नहीं 
निकली ही ना तब
परिदां कैसा !


मानवता का 
दुश्मन बनकर 
सिंहासन पे !


डा लाल रत्नाकर