जनम मृत्यु
हरपल रही है
जीते जीवन।
यही रहेगा
धन धरती और
कर्म तुम्हारा।
मर्म समझ
तब तक न आया
जब पाया है।
जग ऐसे ही
चलता ही जाएगा
तुम्हारे बिना।
जरूरत है
हमारी तुम्हें तब
समझ आया।
प्रतीकों तुम्हें
हमने आजमाया
कब उसने।
पूरा जीवन
जीकर चले जाना
उचित जाना।
मेरे बस में
तेरे बस में जो था
वही तो किया।
धर्म अधर्म
सब सगे संबंधी
किसके संग।
रंग है चोखा
ढंग अनोखा तेरा
सच है मेरा।
बोल रहा है
जो सच-सच मेरा
ढक अपना।
गहना होता
बचन बोल यदि
झूठ बोलता।
- डॉ. लाल रत्नाकर
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