बुधवार, 19 मार्च 2025
शनिवार, 15 मार्च 2025
सपना देखा
सफ़र में था
कई तरह के साथ
मिला था रात।
वह परायी
बहुत करीब थी
अपनों से भी।
ऐसे लोग हैं
जो सपने में होते
वह कहां है।
यही धरा पे
बेचते सपनों को
राजा बनके।
- डॉ लाल रत्नाकर
समय मिला
भगवान को
मानो न मानो तुम
अधिकार है।
शिक्षा का हक
सबको करो विचार
यही आधार।
चलो बसाएं
गांव ऐसा सपना
होए साकार।
आग बबूला
होना नहीं दुश्मन
लगाए आग।
-डॉ लाल रत्नाकर
शुक्रवार, 14 मार्च 2025
चतरू तेरी चतुराई का हाल सुनाऊँ कैसे !
चतुराई करता
पता चलता !
काम तुम्हारा
चालाकी का सबको
पता चलता !
नहीं भरोसा
कोई करता तेरा
कैसे कर लू!
मनसूबे को
होगा तोड़ना तेरा
हर हालात !
डॉ लाल रत्नाकर
शनिवार, 8 मार्च 2025
आधी आबादी कितनी आजादी है विचार करो।
लानत जब
तुम पर लगे तो
धार्मिक होना।
अंधी जनता
भक्त तो हो जाएगी
उसकी बेटी?
कहीं नजर
उसकी बेटी आती
समारोह में।
मंगल वन
बना रहे हो तुम
पूंजीपतियों।
उस जनता
मेहनत की थाती
लूटकर ही।
चलता रहे
साम्राज्य तुम्हारा तो
लूटता रहे।
- डॉ लाल रत्नाकर
वजह कोई जरूर है उनमें रिश्ते नहीं है।
यह भी कोई
तरीका है उनका।
कैसे समझें।
मनमुटाव
होता रहता है सदा
करीबियों में।
पर इतना
खतरनाक रिश्ता
दिखता नहीं।
समय पर
वही करीब तो था
जब उनके।
-डॉ लाल रत्नाकर
शुक्रवार, 7 मार्च 2025
कितना बौना तुम्हारी सुरक्षा ने कर दिया है।
सबका साथ
सत्यानाश जिनका
साथ नहीं है।
बकवास भी
अच्छी लगती जब
मरे जमीर।
आसान नहीं
सिंहासन रहना
छीन कर के।
चले जा रहे
कौन-कौन आज ही
वह क्यों बता।
सुनाओ हाल
उस सौदागर का
जो नकली है।
बात असली
करता तो है पर
असलियत ?
तुम्हारी कहूं
या तो उसकी कहूं
कहूं किसकी।
छोड़ गया है
हरा भरा खेत भी
नवनिहाल।
सब्र हो जाता
यदि वह मरता
जो मार रहा।
-डॉ लाल रत्नाकर
पूरी दुनिया हड़पने में लगी तड़प रही।
केवल तुम
ऐसा नहीं करते
अपराधी सा।
लोकतांत्रिक
नाटक करता है
राष्ट्रद्रोही है।
समझना है
बहुत कठिन भी
आचरण से।
दिखाई नहीं
देता उसमें दोष
अंधभक्ति में।
-डॉ लाल रत्नाकर
गुरुवार, 6 मार्च 2025
तिलक छापा अंग प्रत्यंंग धरो प्रतीक ही है।
ठग ने ठगा
मन ने नहीं माना
मंदिर गए।
ठगे गए हैं
लौट के पता चला
कहां से आए।
उपदेशक !
वह पानी पिए हैं
घाट घाट का ।
मंदिर नहीं
घर चाहिए तुम्हें
अधिकार है।
अन्न दे रहा
उपकार नहीं है
गुलाम बना।
कब जागोगे
आंखों वाले बहरे
सोए गहरे।
डॉ लाल रत्नाकर
बुधवार, 5 मार्च 2025
अखंड होना पाखंडी चमत्कारी अंधविश्वासी।
कैसा धर्म है
जिसमें अधर्म है
आचरण में।
प्रतीक होना
लक्षण है ठगना
बरगलाना।
आमजन को
पशु सा व्यवहार
मानवता से।
समझ आता
सामान्य तौर पर
आमजन को।
डॉ लाल रत्नाकर
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