झूठे मक्कार
कायर तड़ीपार
तुम कौन हो !
बाबा साहब
जानते थे चरित्र
तुम्हारा कुल !
इसलिए ही
लिखा है संविधान
नहीं मानते ?
मनुवादियों
दिल पर पत्थर
रख मानो न !
डॉ लाल रत्नाकर
मुझे लगता है कि जिन लोगों ने या जिसने इस विधा का आविष्कार किया होगा वह बहुत ही तार्किक और प्रासंगिक रहा होगा और उसके समय में भी बहुत-बहुत भयावह परिस्थितियां रही होगी कम शब्दों के माध्यम से गंभीर बात कह देना आमतौर पर जो बड़े-बड़े भाषणों से संभव नहीं होता।