मंगलवार, 26 जनवरी 2010

हाइकु

डॉ.लाल रत्नाकर 


ना जो अमर 
कभी था, न ही होगा 
फिर तड़प ||



यद्यपि सच 
वह नहीं होता है 
जो दिखाई दे ||


उसको क्या है 
जिसकी परछाई 
उतनी ही हो ||


मैंने उनसे 
इतना ही कहा था 
तुम चोर हो ||


पर वह भी 
पलट कर कहा 
तुम भी वही ||


भरत सुनो 
गाली देते शर्माओ
प्राचार्य है ये ||

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