डॉ.लाल रत्नाकर
ना जो अमर
कभी था, न ही होगा
फिर तड़प ||
यद्यपि सच
वह नहीं होता है
जो दिखाई दे ||
उसको क्या है
जिसकी परछाई
उतनी ही हो ||
मैंने उनसे
इतना ही कहा था
तुम चोर हो ||
पर वह भी
पलट कर कहा
तुम भी वही ||
भरत सुनो
गाली देते शर्माओ
प्राचार्य है ये ||
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