गुरुवार, 29 अप्रैल 2010

आदमी

तुम्हारी दशा

डॉ.लाल रत्नाकर

नयी दुनिया 
पुरानी दुनिया से 
सुरक्षित है 


कह सकते 
हो तो कह दो पर 
इतना सच 


कह सकने 
का माद्दा है तुममे
तो कह ही दो 


जमीन पर 
चलना आता होगा 
तभी उड़ना


अभी तक तो 
हम यही समझे 
पर तुम्हारा 


क्या कहना है 
उनको ज़माने में 
तुम्हारी दशा    

शुक्रवार, 9 अप्रैल 2010

बेईमान की, सूरत देखी आप, दिखता नहीं

डॉ.लाल रत्नाकर

सुन्दर घर
मन सुन्दर तो हो
मत चुसो खूं

खाना खाकर
धोखा नहीं करते
नमक खाया

किसका रक्त
चूसा तुमने जब
उन सबका

गरीब होना
उतना बुरा नहीं
जितना चोर

बड़े से बड़े
ईमानदारी कहाँ
करते होंगे



क्योंकि इमान
और बेईमान का
ताल्लुक नहीं

दोनों से मिला
उतना ही भरोसा
पर इमान

ईमानदार
तो ईमानदार ही
होता है भाई

बेईमान की
सूरत देखी आप
दिखता नहीं

रविवार, 4 अप्रैल 2010

सर्वोच्च सच

डॉ.लाल रत्नाकर

इंजिनियर
जो करता उसमे
कितना मिला

अफसर है
किसके किसके ओ
फिर सेवक

कौन कहता
ख़ुशी में गम नहीं
मिला रहता

जहाँ रुकता
है  वह समतल
नहीं होता न

आखिर कहाँ
आया धन  इतना
जनता से ही

मूर्तिया गढ़ी
जिसने वह कौन
रचनाकार

पता नहीं क्यों
इस सहन्शाह से
डरते सब

जब की वह
शातिर घोर चोर
लगता ही है

सर्वोच्च सच
से इतना दूर है
लगता उसे

पर चोरों की
जमात जनमत
बटोरती है

कहते वह
अपराधी नहीं  है
गुनाहगार