गुरुवार, 1 जुलाई 2010

मुझे लेना है हिसाब तुमसे भी

डॉ.लाल रत्नाकर 

गर्मी की आड़ 
बरसती है आग 
पियास नहीं .


लगता हर 
रोज रोज बाज़ार 
बिकता कौन .


इज्जत तेरी 
बाज़ार में उछाला 
अखबारों ने .


मुझे लेना है 
हिसाब तुमसे भी 
मेरे मूल्य का .


दाम  तुम्हारा 
वह दे दिया होगा 
लागत दे दो. 


नहीं दोगे यूँ 
क्योंकि जिन्हें आदत 
है जूतों की ही .


काश जूते से 
सबक लिया होता 
कितना मारें .


अब लगता 
है संसद लायक 
ट्रेंड हो गया .