मंगलवार, 18 मई 2010

गुरुवार, 13 मई 2010

आखिर कब आएगी याद .............?

डॉ.लाल रत्नाकर


जब जब मैं 
साहस करता हूँ 
विरोध करू 


तब तब ओ 
आकर खड़ा होता 
अकड़कर


पर उसने 
अपराध कराने
सिखा दी कला


अपराध का 
मतलब तो अब 
गया बदल 


क्योंकि उसने 
चुप रहकर जो 
करम किया 


सुनकर ही 
दिल बैठने लगा 
मज़ा ले रहा 


आखिर कब 
आएगी याद मुझे 
इंसानियत  

सोमवार, 10 मई 2010

हाइकू

डॉ. लाल रत्नाकर


उनकी दशा 
देखते ही बनती  
छुपाते हुए .


अपने कर्मों 
कुकर्मों पर शर्म तो 
आती ही नहीं .


जीवन पर 
उनका हक होता 
तो जीने देते .


कभी नहीं ओ 
अपने और गैर 
को देखा एक .


नजर से जो 
भाषण देते मुल्क 
एक है हम .



हाइकू

सर्व समाज 
का नारा देकर वो 
लूटा किसको .


कहते तो है 
विश्वास करो मेरा 
पर कितना .


जब उनका 
विश्वास किया तब 
तो धोखा खाया .


अब कहते 
धोखा खाना महज़ 
ना समझी है .


आज बगल
में जो बैठे हैं छूने 
पर धोते थे 


नहीं किया था 
शोषण हमने वो 
हम थोड़े थे .

डॉ.लाल रत्नाकर