शुक्रवार, 4 जून 2010

आदमी रूप में विषधर ..................

डॉ.लाल रत्नाकर  


हज़ार लम्हे,
तुम्हे मुबारक हो,
हमारे साथी .

तुम्हारी यादें ,
हमारे दुःख की है,
आधारशिला .


तुम्हारा छल,
और बल है उस,
हरामी का ही .


जिसको मैंने ,
दूध पिलाया तब,
विष निकला .


आदमी रूप .
में विषधर वह,
विश्वास कहाँ .


तपती हुयी,
गरमी में उसने,
आग लगायी .