डॉ.लाल रत्नाकर
ना जो अमर
कभी था, न ही होगा
फिर तड़प ||
यद्यपि सच
वह नहीं होता है
जो दिखाई दे ||
उसको क्या है
जिसकी परछाई
उतनी ही हो ||
मैंने उनसे
इतना ही कहा था
तुम चोर हो ||
पर वह भी
पलट कर कहा
तुम भी वही ||
भरत सुनो
गाली देते शर्माओ
प्राचार्य है ये ||
मंगलवार, 26 जनवरी 2010
शुक्रवार, 22 जनवरी 2010
हाइकु - डॉ.लाल रत्नाकर
कोहरा छाया
जब शाम हुई थी
मै दिल्ली में था |
सोचा भी नहीं
मुश्किल है चलना
कोहरे में भी |
जब शाम हुई थी
मै दिल्ली में था |
सोचा भी नहीं
मुश्किल है चलना
कोहरे में भी |
गुरुवार, 14 जनवरी 2010
आज हमने तुम्हारे लिए एक सपना बुना |
डॉ.लाल रत्नाकर
आज हमने
तुम्हारे लिए एक
सपना बुना |
सुनोगी रात
सपनों में तुम्हे
जगाता रहा |
उनके घर
जब लूट मची थी
लुटेरे सब |
लुटेरे सब
अपने पहचाने
आते जाते थे |
चोर उचक्के
सब उसके साथ
फिर लुटेरा |
पहचाना था
पर चुप हो गया
शरीक जो था |
अमर गया
बेइज्जत होकर
किसने लुटा |
मुलायम ना
मुलायम नहीं था
कठोर संग |
अब देखना
फिर चमकेगा वो
ओ चला गया |
इनका तो था
इतिहास ही सदा
धोखा ही देना |
कहाँ फंसे थे
जानता है फ़साना
अरे अमर |
तुमको लुटा
उसको भी उसने
तब लूटा था |
चला गया है
क्या कहते वह
नहीं गया है |
दाद हो गया
बरबाद हो गया
आना उसका |
शुक्रवार, 1 जनवरी 2010
नया सवेरा नूतन वर्ष लाया २०१० को .
हाइकु
डॉ.लाल रत्नाकर
नया सवेरा
नूतन वर्ष लाया
२०१० को .
हाल बेहाल
खुशियों से भरा है
नवीन साल .
आप सबको
मुबारक हो नया
ख़ुशी का साल .
डॉ.लाल रत्नाकर
नया सवेरा
नूतन वर्ष लाया
२०१० को .
हाल बेहाल
खुशियों से भरा है
नवीन साल .
आप सबको
मुबारक हो नया
ख़ुशी का साल .
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