सोमवार, 29 मार्च 2010

कफ़न ओढ़,नफ़रत फैलाता,बनता नेता

डॉ.लाल रत्नाकर

स्वाद ख़राब
तो होना ही था पर
बीमारी नहीं

उसकी आँखें
उतनी कजरारी
तो नहीं होगीं

जितना दम
पहले रहा होगा                                                                                                  
अब नहीं है

गुज़ारे दिन
अरमान से पर
खेल नियति

का मेल भला
क्या होगा हाल भला
बदनामी का

जमीर बेचा
इमान खो खो कर
क्या बचा होगा

खुशियाँ भी है
कोई कह रहा था
नीद आती है

बेजान नहीं
मुर्दा भी नहीं पर
जिन्दा भी नहीं

कफ़न ओढ़
नफ़रत फैलाता
बनता नेता

गुरुवार, 25 मार्च 2010

बूढ़े हुए ये,पर स्वाद जवानी,के है इनके |

















डॉ.लाल रत्नाकर


अब कहानी 
कहने का समय 
बीत गया है 


समय बचा 
तो कहानी गढ़ना 
सीख रहा हूँ 


जीवन बिता 
षडयन्त्रो में ही 
उनका नाम 


जानकर भी 
क्या करोगे भईया 
काजल को 


चिट्ठियां लिख 
पूछ रहा हूँ पर 
जवाब नहीं 


कहता वह 
नहीं दूंगा कर लो 
जो करना हो 


डंडा कर लो 

सब कुछ कर लो  
जवाब न दूँ 


कहता नहीं 
समझते सब है 
अपराधी जो


नोट इकठ्ठा 
करना मर्म धर्म 
ही है उसका 


कर लो हल्ला 
न्यायालय में और 
कहीं कितना 


उसके संग 
मुखबिर रहता 
विविध रंगा


चोर उचक्के 
विविध रंग के जो 
वह पाला है


लड़ लो कुत्तों 
वो जो स्वामिभक्त है 
तुम उनसे 


वो देख रहे 
अवशान उसका 
होने वाला है 


चतुर भी है 
चुगल खोर भी वो 
समझता है                                                           


पर इनका 
उपयोग यही है 
क्या करता मैं 






चिल्लाओ खूब               


शोर मचा लो पर 
ये शातिर है 


इनको शर्म 
नहीं आती है सर 
से ही काले है 


करने तो दो
सब करम इन्हें 
मनमानी के 


बूढ़े हुए ये 
पर स्वाद जवानी 
के है इनके 


मरने दो 
घुट घुट इनको 
लालच ही में 




        

सोमवार, 15 मार्च 2010

इन्सान वही

डॉ.लाल रत्नाकर


मै तेरे गाल
का काला तिल जैसा
निशान नहीं

तेरी नज़रों
में भला इन्सान हूँ
या नहीं हूँ

ये हरकतें
तुम्हारी हैवान सी
इन्सान नहीं

ज़माने याद
उनको करते है
जो इन्सान है

इन्सान यहाँ
वहाँ भटकते तो
जरूर पर

रुकते वहीं
जहाँ इमान होता 
इन्सान वही

बरकत है
नियत है उनकी
ईमानदार

शुक्रवार, 12 मार्च 2010

यूँ ही ठीक हो

उनका नहीं
दोषी वो है जिनकी
मदद की है

सजा देने से
मुजरिम तरपे
सच्चाई नहीं

इन्सान बनो
बेईमान हो तुम
तुम्हारा सच

घबराकर
किसे डराते, खुद
छुप जाते हो

समय कहाँ
सच - सच बोलना
भला होने का

भला बनकर
क्या करोगे तुम तो
यूँ  ही ठीक हो