सोमवार, 10 मई 2010

हाइकू

डॉ. लाल रत्नाकर


उनकी दशा 
देखते ही बनती  
छुपाते हुए .


अपने कर्मों 
कुकर्मों पर शर्म तो 
आती ही नहीं .


जीवन पर 
उनका हक होता 
तो जीने देते .


कभी नहीं ओ 
अपने और गैर 
को देखा एक .


नजर से जो 
भाषण देते मुल्क 
एक है हम .



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