डॉ.लाल रत्नाकर
जब जब मैं
साहस करता हूँ
विरोध करू
तब तब ओ
आकर खड़ा होता
अकड़कर
पर उसने
अपराध कराने
सिखा दी कला
अपराध का
मतलब तो अब
गया बदल
क्योंकि उसने
चुप रहकर जो
करम किया
सुनकर ही
दिल बैठने लगा
मज़ा ले रहा
आखिर कब
आएगी याद मुझे
इंसानियत
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