बुधवार, 2 दिसंबर 2015

काले दिन !

ये काले दिन
भी बितेंगे आख़िर
में कब तक !

जब तक हैं
ये सत्ता के सावन
मेरे मन में !

नहीं चैन है
मन को तब तक
याद करोगे !

भूल गये है
भाव हमारे मन
उपवन में !

धन दौलत
सब यहीं रहेगी
जड़ता मन !

@ डा लाल रत्नाकर

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