रविवार, 20 दिसंबर 2009

जी मैंने हाइकु लिखना शुरू......................................


"जी मैंने हाइकु लिखना शुरू किया है यह मेरा पहला हाइकु है.
 इसकी शुरुआत श्री कमलेश भट्ट कमल के घर 'हाइकु दिवस' पर आयोजित कार्यक्रम जिसमे  मुझे भी रहना था या कहिये आमंत्रित था जिसमे शहर के बुद्धिजीवियों, साहित्य कर्मियों और उद्यमियों की एक चयनित उपस्थिति में जब इस गोष्ठी को संबोधित करना पड़ा तब तक मै बहुत आकर्षित इस तरह के लेखन के प्रति नहीं था, 


प्रो. वर्मा ने कविता की नई विधा को आगे बढ़ाया : बेचैन

Dec 06, 10:17 pm




गाजियाबाद, वसं : हाइकू दिवस पर कवियों ने हाइकू कविता पर गंभीर चर्चा की। इस मौके पर सृजन कर्मियों ने एक साथ साहित्यिक गतिविधियों को आगे बढ़ाने पर जोर दिया। समारोह में मुख्य वक्ता डा.कुंवर बेचैन ने कहा कि जापान से आयी 17 वर्णो की काव्य विधा को हाइकू की संज्ञा दी गयी। प्रो. सत्य भूषण वर्मा के जन्मदिन को हाइकू दिवस के रूप में मनाया जाता है। इन्होंने कविता की इस विधा को आगे बढ़ाने में विशेष योगदान दिया।
समारोह के अध्यक्ष ओम प्रकाश चतुर्वेदी ने इसे सांकेतिक कविता की संज्ञा दी। डा. लाल रत्नाकर ने इस प्रकार की साहित्यिक गतिविधियों को महानगर की सांस्कृतिक जड़ता को तोड़ने में महत्वपूर्ण बताया संयोजक कमलेश भट्ट ने हाइकू में प्रो. वर्मा के महत्वपूर्ण प्रयासों को रेखांकित किया।

जब दैनिक जागरण की खबर में यह पढ़ा की शहर की सांस्कृतिक गरिमा तभी बन सकती है जब कलात्मक व् रचनात्मक गतिविधियाँ चलती रहें .
लैपटॉप पर उंगलिया चलती गयी और जो कुछ हुआ आपके सम्मुख है" -
-डॉ.लाल रत्नाकर 





बाथ रूम में 
नहीं है वे जिन्हें
होना था वहाँ 


जिससे मिला 
वह कोई और था 
निकाला काम


जब बात हो
यह कह देना मै 
नहीं आऊंगा 


उसने मुझे 
चूमा बहुत धीमे 
मैंने कसके 


सुबह उठा 
जैसे संगिनी उठी 
सपने टूटे 


तारों की छाँव 
नदी के किनारे का 
हमारा गाँव 


वह नज़र 
भोगा जब उसका 
मैंने कहर 


जिसने सुना 
भरोसा नहीं किया 
आरोपों पर 


निकाला मैंने 
दिल में चुभती सी 
उनकी यादें 


नहीं चाहते 
वह मै आगे आऊ
राजनीति में 


कुचक्र गढ़ा
जान बूझ करके 
तब उसने 


जब सहज 
हो रहा था उसका 
उजड़ा मन


धैर्य नहीं था 
उसके चक्कर में 
फसा हुआ था  


परम वीर 
मिलना ही चहिये
बेईमानों को 


बटी रेवड़ी
अपनो अपनो को  
हमें मिली थी 


वह खुश थे 
सपना भाग गयी 
बेवफा  बीबी 


आप कहाँ थे 
लूट रहा था जब 
घर उनका 


हम सो गए 
जब लूट रहा था 
पडोसी घर 


वह सो गए 
जब बन रहा था 
उनका घर 


षडयंत्र हाँ 
सरकारी दफ्तर 
रचवाते है


उसने पूंछा 
बिकती है नौकरी 
चपरासी की

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