शुक्रवार, 25 दिसंबर 2009

जवान एसा जिससे बुढ़ापा भी शरमाता है |

हाइकु 
डॉ.लाल रत्नाकर










बस्तियां जलीं
वह बेखबर है
बटोर कर




दौलत बड़ी
कमाई नहीं लूटी
सत्ता नसीन




करदे माफ़
जमाना लेकिन वह
छुपाया कहाँ 




बदनीयत है
जमाना सब्र करे
तो कैसे करे




हसरतें है
उनका क्या करें
बूढ़ा हो गया




जवान एसा
जिससे बुढ़ापा भी
शरमाता है


उनकी पार्टी 
जिसमे भर्ती होना 
हो दौलत दो 


ननकू नही 
जो सफाई करता 
वह पंडित 


भला मानस 
कहाँ मिलता होगा 
खुद के सिवा 















जब उनको
देखा था तब वह
एसी नहीं थी

-------

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें