सोमवार, 15 मार्च 2010

इन्सान वही

डॉ.लाल रत्नाकर


मै तेरे गाल
का काला तिल जैसा
निशान नहीं

तेरी नज़रों
में भला इन्सान हूँ
या नहीं हूँ

ये हरकतें
तुम्हारी हैवान सी
इन्सान नहीं

ज़माने याद
उनको करते है
जो इन्सान है

इन्सान यहाँ
वहाँ भटकते तो
जरूर पर

रुकते वहीं
जहाँ इमान होता 
इन्सान वही

बरकत है
नियत है उनकी
ईमानदार

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