रविवार, 4 अप्रैल 2010

सर्वोच्च सच

डॉ.लाल रत्नाकर

इंजिनियर
जो करता उसमे
कितना मिला

अफसर है
किसके किसके ओ
फिर सेवक

कौन कहता
ख़ुशी में गम नहीं
मिला रहता

जहाँ रुकता
है  वह समतल
नहीं होता न

आखिर कहाँ
आया धन  इतना
जनता से ही

मूर्तिया गढ़ी
जिसने वह कौन
रचनाकार

पता नहीं क्यों
इस सहन्शाह से
डरते सब

जब की वह
शातिर घोर चोर
लगता ही है

सर्वोच्च सच
से इतना दूर है
लगता उसे

पर चोरों की
जमात जनमत
बटोरती है

कहते वह
अपराधी नहीं  है
गुनाहगार

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