अपने ही हैं
इतने सारे सपने
तारे तोड़ना !
नहीं जोड़ना
अब किसी गॉठ को
पड़ी है कैसे ?
नहीं सोचना
पतन पुराण पर
इस युग में !
हठधर्मी हूँ
गठबंधन मेरा
पाखंडी से है !
डॉ लाल रत्नाकर
मुझे लगता है कि जिन लोगों ने या जिसने इस विधा का आविष्कार किया होगा वह बहुत ही तार्किक और प्रासंगिक रहा होगा और उसके समय में भी बहुत-बहुत भयावह परिस्थितियां रही होगी कम शब्दों के माध्यम से गंभीर बात कह देना आमतौर पर जो बड़े-बड़े भाषणों से संभव नहीं होता।