शुक्रवार, 14 मार्च 2025

चतरू तेरी चतुराई का हाल सुनाऊँ कैसे !


चतरू तेरी 
चतुराई का हाल 

सुनाऊँ कैसे ! 


जब जब तू  
चतुराई करता 
पता चलता !

काम तुम्हारा 
चालाकी का सबको 
पता चलता !

नहीं भरोसा 
कोई करता तेरा 
कैसे कर लू!

मनसूबे को 
होगा तोड़ना तेरा 
हर हालात !

डॉ लाल रत्नाकर 

शनिवार, 8 मार्च 2025

आधी आबादी कितनी आजादी है विचार करो।




आधी आबादी 
कितनी आजादी है 
विचार करो। 

लानत जब 
तुम पर लगे तो
धार्मिक होना। 

अंधी जनता 
भक्त तो हो जाएगी 
उसकी बेटी?

कहीं नजर 
उसकी बेटी आती 
समारोह में।

मंगल वन 
बना रहे हो तुम 
पूंजीपतियों।

उस जनता 
मेहनत की थाती
लूटकर ही।

चलता रहे 
साम्राज्य तुम्हारा तो
लूटता रहे।

- डॉ लाल रत्नाकर

वजह कोई जरूर है उनमें रिश्ते नहीं है।



वजह कोई
जरूर है उनमें 
रिश्ते नहीं है।

यह भी कोई 
तरीका है उनका।
कैसे समझें।

मनमुटाव 
होता रहता है सदा 
करीबियों में। 

पर इतना 
खतरनाक रिश्ता 
दिखता नहीं।

समय पर
वही करीब तो था
जब उनके।

-डॉ लाल रत्नाकर 

शुक्रवार, 7 मार्च 2025

कितना बौना तुम्हारी सुरक्षा ने कर दिया है।



कितना बौना 
तुम्हारी सुरक्षा ने
कर दिया है।

सबका साथ 
सत्यानाश जिनका 
साथ नहीं है। 

बकवास भी 
अच्छी लगती जब 
मरे जमीर।

आसान नहीं 
सिंहासन रहना
छीन कर के।

चले जा रहे 
कौन-कौन आज ही
वह क्यों बता। 

सुनाओ हाल 
उस सौदागर का 
जो नकली है। 

बात असली 
करता तो है पर 
असलियत ?

तुम्हारी कहूं 
या तो उसकी कहूं 
कहूं किसकी।
 
छोड़ गया है 
हरा भरा खेत भी 
नवनिहाल।

सब्र हो जाता 
यदि वह मरता
जो मार रहा।

-डॉ लाल रत्नाकर

पूरी दुनिया हड़पने में लगी तड़प रही।

 

पूरी दुनिया 
हड़पने में लगी 
तड़प रही। 

केवल तुम 
ऐसा नहीं करते 
अपराधी सा।

लोकतांत्रिक 
नाटक करता है 
राष्ट्रद्रोही है। 

समझना है
बहुत कठिन भी 
आचरण से।

दिखाई नहीं 
देता उसमें दोष
अंधभक्ति में।

-डॉ लाल रत्नाकर

गुरुवार, 6 मार्च 2025

तिलक छापा अंग प्रत्यंंग धरो प्रतीक ही है।


गूगल से साभार 

तिलक छापा 
अंग प्रत्यंंग धरो
प्रतीक ही है।

ठग ने ठगा
मन ने नहीं माना 
मंदिर गए। 

ठगे गए हैं 
लौट के पता चला 
कहां से आए। 

उपदेशक ! 
वह पानी पिए हैं 
घाट घाट का ।

मंदिर नहीं 
घर चाहिए तुम्हें 
अधिकार है। 

अन्न दे रहा
उपकार नहीं है 
गुलाम बना।

कब जागोगे 
आंखों वाले बहरे
सोए गहरे।

डॉ लाल रत्नाकर

बुधवार, 5 मार्च 2025

अखंड होना पाखंडी चमत्कारी अंधविश्वासी।

 



अखंड होना
पाखंडी चमत्कारी 
अंधविश्वासी। 

कैसा धर्म है 
जिसमें अधर्म है
आचरण में। 

प्रतीक होना
लक्षण है ठगना
बरगलाना।

आमजन को 
पशु सा व्यवहार 
मानवता से। 

समझ आता 
सामान्य तौर पर 
आमजन को। 


डॉ लाल रत्नाकर


रविवार, 2 मार्च 2025

बिहार ! कुर्मी क्या बीजेपी को ही चुनेगा अब।


                                                                   


 बिहार ! कुर्मी   
क्या बीजेपी को ही  
चुनेगा अब।


जागेगा कब 
कुर्मी समाज अब 
दारोमदार!


मंडल का है 
कमंडल का भी है 
परिवर्तन। 


जमीन नहीं 
जमीर का सवाल 
सामने अब।


समाजहित
भाड़ में चला जाए 
सत्ता के लिए।
डॉ.लाल रत्नाकर



शनिवार, 1 मार्च 2025

जिंदगी और जिंदगी दरमियां हिसाब कहां।

 



जिंदगी और 
जिंदगी दरमियां 
हिसाब कहां। 

ग़म जहां में
कम कहां कहां है 
अपने मध्य।

इंतजार है
कितनी अराजक 
परिस्थितियां।

सामाजिक है
सरोकार उनके।
असाधारण।

नहीं जवाब 
हिसाब किताब में 
उनका आज।

जिंदगी और 
जिंदगी दरमियां 
हिसाब कहां। 

                                       -डॉ.लाल रत्नाकर

असहज हो तो सहज हो जाओ समय कहे।



असहज हो
तो सहज हो जाओ 
समय कहे। 

सहज और 
असहज के मध्य 
फर्क करना। 

आसान नहीं 
है फैसला करना 
इस समय। 

किस समय 
की बात करते हैं 
कुटिल कहां! 

विश्वास कहां 
आज के माहौल में 
बताओ जरा! 

                                                           - डॉ लाल रत्नाकर

सोमवार, 24 फ़रवरी 2025

दिवानगी है अगर दिल में ही मोहब्बत है।

 



दिवानगी है 
अगर दिल में ही
मोहब्बत है।

चलो निकलो
सितम सहकर
खिलाफत में।

दुश्मन देश 
आ गया भीतर ही 
उनके लिए।

जिसको माना
भगवान लाया है 
तुम्हारे लिए।

निकलो और 
आलस्य त्यागकर 
देश बचाने।

डॉ लाल रत्नाकर

शनिवार, 22 फ़रवरी 2025

नंगापन है गंजापन है बुद्धि कहां तुम्हारी।



 हाइकु एक विधा है अभिव्यक्ति की जो इस विधा को समझते हैं उन्हें बहुत आनंद आता है वह शब्दों की मीनिंग भी समझते हैं और उसकी प्रतीकात्मकता भी। 
समय को चिन्हित करने के लिए कुछ प्रश्न हमेशा खड़े होते हैं, उन्हीं प्रश्नों का जवाब साहित्य कला और संगीत में मुखरित होता है यदि यह सब किसी भी विधा में नहीं है तो ना तो वह साहित्य है ना कला है और ना ही संगीत है।
इसलिए यह भय बना रहता है कि सच कहने में बहुत खतरा है ऐसा क्यों हो रहा है इन सब सवालों का जवाब इन पंक्तियों में है।

यह सवाल 
लाजिम है समझा 
पाओगे तुम।

इसलिए अपनी बात कहते हुए सच से बिचलित मत होइए क्योंकि समय सब का हिसाब लेता है और सच्चाई आपके सामने आती है। इसलिए यह सवाल उठाने में क्या दिक्कत है -

लोकतंत्र के
दुश्मन क्यों हो तुम 
बतलाओगे।

इसलिए आज बहुत जरूरी है उन सवालों को खड़ा करना जो सत्ता में बैठे लोगों से किये जा रहे हों -

सत्ता में बैठे
भक्तों की जो फौज है
विज्ञान कहां।

पाखंड अंध
चमत्कार आधार 
किसका यह।

संस्कृति पर
अंगुलियां उठती
किस पर है।

आग बबूला 
हो जाओगे इतना 
नाकामी पर।

अपनी भाषा 
का मूल्यांकन कर
आरोप लगा।

बुलडोजर 
का लाशों से रिश्ता है
छुपता नहीं।

बात नहीं है 
धर्म-कर्म अधर्म 
सब चंगा है।

कौन कहता 
डबल बोल रोल
दोनों इंजन।

नंगापन है 
गंजापन है बुद्धि 
कहां तुम्हारी।

- डॉ. लाल रत्नाकर

शुक्रवार, 21 फ़रवरी 2025

कठमुल्ले हो गेरुआ लिबास में आईना देख।


 
कठमुल्ले हो
गेरुआ लिबास में
आईना देख।

नफरत भी
कठमुल्ला निशानी
पहचान यही।

पोंगा पंडित
घोंघा बसंत संत
अंत कहां है।

कहता धर्म
करता जाता काम
अपराधी है।

डाकू के काम
राम के नाम पर
यशस्वी कैसा।

नंगा हो गया
गंगा में नहा कर
महाकुंभ में।

हजारों लाशें
लापता है जो संख्या
उनकी कहां।

बहा दिया है
गहरी धारा में ही
कुचले हुए।

बरसात में
निकालेगा पानी से
बाढ़ का जल।

लेखा उनका
कितना देगा अब
जो डूब गए।

महाकुंभ में
मरने वाले सब
स्वर्ग गए हैं।

बोल रहा है
खोल रहा है द्वार
मुक्तिधाम के।

बहुजन के
अखंड पाखंड औ
अंधकार के।

डॉ.लाल रत्नाकर

दौरे जाहिल का यह समय है पद कोई हो।

 










आईए यहां
संसद के बाहर
फुटपाथ पे।

सभ्यता खड़ी
इंतजार करी है
जुमलेबाजी।

करो आप भी
अपने जीवन में
मौका भी तो है।

अवसर की
आपदा में जरूर
लाभ लेना है।

दौरे जाहिल
का यह समय है
पद कोई हो।


डॉ.लाल रत्नाकर

रविवार, 16 फ़रवरी 2025

तमस पर बहस कैसी होगी जुमले बाजी।

 



                                                  तमस पर
                                             बहस कैसी होगी 
                                               जुमले बाजी।

करते जाओ 
कौन रोक रहा है 
विनाश तक।

परोपकार 
शब्द तो अच्छा ही है 
पर किसका। 

वह औरत 
जमीर रखती है 
बताए कौन !

वह चाकर
परास्त करता है
तिकड़म से।

विकल्पहीन
वक्त रौंद रहा है 
प्रतिभाओं को।

वह डरता 
उससे अब क्यों है 
विकल्प तो है!

-डॉ.लाल रत्नाकर

संत वासंती रंग बिरंगा वेश बदरंगा है।

 


संत वासंती 
रंग बिरंगा वेश
बदरंगा है।

नारंगी रोल
मन वचन तोल
सच न बोल।

प्लास्टिक है ये
असली अहसास 
नकली जैसे।

ख़ान पान में
जीवन एहसास 
कैसा विकास।

दिव्य विचार 
उसने समझा तो
समझ आया।

-डॉ.लाल रत्नाकर


खौफजदा है अवाम आपदा में अवसर के !



खौफजदा है 
अवाम आपदा में 
अवसर के !

सत्ता में बैठा 
निरंकुश शासक 
डरता नहीं !

मौत से वह 
भयभीत नहीं है 
कहता ऐसा !

मर रहे हैं 
लोग अकारथ जो 
कहाँ है पता !

जब आयोग 
बना अयोग्य लोगों 
का जमघट !

सत्ता में बना 
रहना है अगर तो 
चुनो अपना !

- डॉ लाल रत्नाकर

शनिवार, 15 फ़रवरी 2025

प्रेम संगत मंगल सुसंगत क्षोभ उनका।


 प्रेम संगत 
मंगल सुसंगत 
क्षोभ उनका।

हृदय तल 
सुकोमल प्रवास 
एहसास हो। 

अन्यथा दोष 
मढ़ना आसान है 
अभिमान है।
 
अज्ञानता से
प्रबल तन मन 
उपवन हो।

चितवन तो 
सौंदर्य से परे है 
मुख उनका।

-डॉ लाल रत्नाक


x

गुरुवार, 13 फ़रवरी 2025

क्या वह गया भयभीत होकर डर गया है।



क्या वह गया
भयभीत होकर
डर गया है।

या व्यापार का
व्यभिचार उनका
खींच ले जाना।

मुमकिन है 
मसले और भी हो 
मन उनका।

चंचल तो हैं
अंकुश उनपर
कौन लगाए?

गरिमा वह
जो भी बनी हुई है 
कौन बचाए। 

मन मस्तिष्क 
सब घिरा हुआ है 
भीतर तक। 

खुलकर तो
वह नहीं बोलता
बीच हमारे !

डॉ. लाल रत्नाकर

जीत जाऐगा हारकर वह भी मंसूबे कैसे !



जीत जाऐगा 
हारकर वह भी 
मंसूबे कैसे !

भला उनका 
कौन करेगा अब
भीख देकर 

हल्ला बोलना 
मुनासिब नहीं है 
उसके साथ !

कौन रहेगा 
कब तक रहेगा 
वहां ठहरा !

विनाश होगा 
विकास के बहाने 
कब तक यूँ !

- डॉ लाल रत्नाकर  
 

मंगलवार, 11 फ़रवरी 2025

जनम मृत्यु, हरपल रही है, जीते जीवन।


 
जनम मृत्यु 
हरपल रही है 
जीते जीवन।

यही रहेगा 
धन धरती और 
कर्म तुम्हारा। 

मर्म समझ 
तब तक न आया
जब पाया है। 

जग ऐसे ही 
चलता ही जाएगा 
तुम्हारे बिना। 

जरूरत है
हमारी तुम्हें तब
समझ आया। 

प्रतीकों  तुम्हें 
हमने आजमाया 
कब उसने।

पूरा जीवन 
जीकर चले जाना 
उचित जाना। 

मेरे बस में 
तेरे बस में जो था 
वही तो किया। 

धर्म अधर्म
सब सगे संबंधी 
किसके संग। 

रंग है चोखा 
ढंग अनोखा तेरा 
सच है मेरा।

बोल रहा है 
जो सच-सच मेरा 
ढक अपना।

गहना होता
बचन बोल यदि 
झूठ बोलता।

- डॉ. लाल रत्नाकर 

सोमवार, 10 फ़रवरी 2025

सामंजस्य कितना कठिन है

 


सामंजस्य 
कितना कठिन है 
आपस में ही !

नाटक और 
करना और बात 
जीवन तक 

राजेश अब 
हमारे बीच नहीं 
गुजर गया !

कल कब है 
आने वाला उसका 
अभी तना है !

पल पल है 
मुश्किल जिनका भी 
जीवन पल !

निर्माण नहीं 
तांडव तेरा मेरा 
कब तक है !

विचार किया 
आचार तुम्हारा है 
कैसा अपना !

चल भूलता 
प्रतिपल अपना 
अवगुण भी !

कब तक है 
अभिमान तुम्हारा 
कब जागोगे !

सो जा तू अब 
बहुत कर लिया 
नाच नंग की !

गोबर खाता 
जा गाय सूअर का 
लड़ता रह !

धर्म तुम्हारा 
नहीं सभी के लिए  
धर्म हमारा !

-डॉ. लाल रत्नाकर

रविवार, 9 फ़रवरी 2025

जाना सबको इस जहाँ से वहां पास उनके !




प्रकृति पर 
निर्भरता कितनी 
जीवन तक 

मृत्यु की उम्र 
निश्चित नहीं होती 
यह जान लो !

जाना सबको 
इस जहाँ से वहां 
पास उनके !

निराशा क्यों 
किसके लिए अब 
जो लूट गया !

सब कुछ तो 
हमारे इर्द गिर्द 
ठहरा हुआ !

- डॉ लाल रत्नाकर